कोरोना संक्रमित लोगों की सेवा को ही बना लिया है प्रतापगढ़ के शमीम ने अपने जीवन का मिशन
बलिया जिले के गरवार थाना क्षेत्र के सिकटिया गांव के रहने वाले डा.शमीम खान पुत्र मोहम्मद सिद्दीक वर्ष 2012 में प्रतापगढ़ के जिला अस्पताल में अप्रेंटिस करने आए थे। इन्होंने पांच साल तक हृदय रोग विशेषज्ञ डा.पीएस मिश्रा के मार्गदर्शन में अप्रेंटिस की और फिर अपना क्लीनिक खोल लिया।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रतापगढ़ मे कोरोना संक्रमित लोगों की सेवा को ही डा.शमीम खान ने अपना मिशन बना लिया है। वे एल-2 अस्पताल में भर्ती मरीजों और उनके तीमारदारों को मुफ्त में भोजन देते हैं। इसके लिए इन्होंने कुछ युवाओं को जोड़कर भोजनालय प्रतापगढ़ नाम से हेल्पलाइन बना रखा है।
मूलत: बलिया जिले के गरवार थाना क्षेत्र के सिकटिया गांव के रहने वाले डा.शमीम खान पुत्र मोहम्मद सिद्दीक वर्ष 2012 में प्रतापगढ़ के जिला अस्पताल में अप्रेंटिस करने आए थे। इन्होंने पांच साल तक हृदय रोग विशेषज्ञ डा.पीएस मिश्रा के मार्गदर्शन में अप्रेंटिस की और फिर अपना क्लीनिक खोल लिया। अब डा.शमीम खान प्रतापगढ़ में ही रच बस गए हैं।
भोजनालय बंद हुए तो शुरू की सेवा
लाकडाउन लगने पर जिला अस्पताल के आस-पास के भोजनालय बंद हो गए। इन्होंने एक दिन देखा कि एल-2 अस्पताल में भर्ती मरीज के स्वजन भोजन के लिए भटक रहे हैं। यह देखकर उनका मन द्रवित हो गया और इन्होंने अपने छोटे भाई सुल्तान अहमद व उसके दोस्तों को बुलाकर यह ठान लिया कि एल-2 में भर्ती जरूरत मंद मरीजों व उनके तीमारदारों को वह मुफ्त में रात का भोजन देंगे।
फिर डा.शमीम खान ने भोजनालय प्रतापगढ़ नाम से हेल्पलाइन बनाया और उसमें अपना व अपने छोटे भाई सुल्तान और उसके दोस्त सुल्तान अहमद पुत्र बन्ने खां का मोबाइल नंबर इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर दिया। यही नहीं, यह तीनों मोबाइल नंबर एल-2 अस्पताल के बाहर चस्पा कर दिया और अस्पताल में भी उपलब्ध करा दिया।
इसके अलावा इनकी टीम का एक साथी रोज शाम सात बजे के पहले एल-2 अस्पताल में जाता है और हर बेड पर जाकर यह नोट करता है कि किस बेड नंबर पर कितने भोजन के पैकेट की जरूरत है। फिर दो घंटे बाद यानी रात नौ बजे प्रत्येक बेड के पास जाकर भोजन के पैकेट का वितरण करते हैं। कभी भोजन के पैकेट की संख्या 55-60 रहती है तो कभी 80-85। इसके साथ ही दो ऐसे परिवारों को दोनों वक्त का भोजन पहुंचा रहे हैं, जिनके यहां खाना बनाने वाला कोई व्यक्ति नहीं है। डा.शमीम कहते हैं कि वह जो भी सेवा कर रहे हैं, उसके लिए किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं ले रहे हैं। यह उनकी अपनी खुद की सोच और शौक है।