शहीद महेश ने घर से आखिरी बार जाते समय बेटों को भारत माता की जय बोलना सिखाया था PrayagrajNews
पिछले साल वह फरवरी के पहले हफ्ते में सात दिन की छुट्टी पर घर आए थे। 11 फरवरी को घर से जम्मू कश्मीर के लिए रवाना हुए थे और तीन दिन बाद उनकी शहादत की खबर आई।
प्रयागराज,जेएनएन। एक साल पहले पुलवामा में फिदायीन हमले में प्रयागराज के सपूत महेश यादव शहीद हो गए थे। वह तीन दिन पहले ही छुट्टïी बिताकर घर से ड्यूटी के लिए गए थे। जाते समय अपने दोनों बेटों समर और साहिल को भारत माता की जय बोलना सिखाकर गए थे। यह अब भी बच्चों की जुबां पर है। बच्चों को आज भी लगता है कि जब वह भारत माता की जय बोलते हैैं तो उनके पापा सुनते हैैं।
14 फरवरी को फिदायीन हमले में हुए थे शहीद
उधर, शहीद की पत्नी तमाम झंझावतों से लड़ते हुए पति के मूल मंत्र 'देश के लिए जीना है देश के लिए मरना हैÓ के सहारे आगे बढ़ रही हैैं। यमुनापार में मेजा के टुडि़हार गांव के राजकुमार यादव टैक्सी चलाते थे। उनके दो बेटों में बड़े 26 वर्षीय महेश यादव वर्ष 2017 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 118वीं बटालियन में भर्ती हुए थे। पिछले साल वह फरवरी के पहले हफ्ते में सात दिन की छुट्टी पर घर आए थे। 11 फरवरी को घर से जम्मू कश्मीर के लिए रवाना हुए थे और तीन दिन बाद उनकी शहादत की खबर आई। पिता सूरत में थे, बदहवास हालत में अगले दिन पहुंचे थे। घर में पत्नी संजू, दो बच्चे, मां शांति देवी और छोटा भाई अंबरीश का रो-रो कर बुरा हाल था। शहीद का शव जब गांव लाया गया तो अंतिम विदाई देने हजारों लोगों की भीड़ जुट गई थी।
शहीद की याद में गांव में विशेष आयाेजन
अब शहीद महेश की पत्नी संजू दोनों बच्चों और परिवार के साथ पति के बताए रास्ते पर आगे बढ़ रही हैैं। पुलवामा हमले की पहली बरसी पर 14 फरवरी को उनके गांव में विशेष आयोजन होगा। शहीद के भाई अमरेश चंद्र यादव ने बताया कि जनप्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों और क्षेत्र के गणमान्य लोग भी शिरकत करेंगे।
धीरे-धीरे पटरी पर आ रही जिंदगी
वीर सपूत महेश यादव के शहीद होने के बाद परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा था। बीमार दादा की तबीयत और गंभीर हो गई थी। उन्हें चेन्नई के अस्पताल में भर्ती कराया गया। पिता राजकुमार काम छोड़ कर घर आ गए। छोटे भाई अमरेश की पढ़ाई छूट गई। बुढ़ापे की लाठी टूट जाने के कारण मां शांति देवी का तो रो-रो कर बुरा हाल था। वह शहीद के दोनों मासूम बेटों को सीने से लगा कर रोती रहती थीं। पत्नी संजू देवी की महीनों तक तबीयत खराब रही। छोटी बहन संजना आज भी उस बात को नहीं भूल पाई है, जब शहीद महेश ने उनकी परीक्षा दिलाने के लिए नई मोटर साइकिल खरीद दिया था। अब धीरे धीरे परिवार का जीवन पटरी पर आ रहा है। दादा तेज प्रताप और पिता राज कुमार खेती में जुट गए हैैं। दोनों बच्चे समर और साहिल का दाखिला गुनई स्थित महर्षि अरविंद विद्यालय निकेतन में करा दिया गया है। अमरेश भी नौकरी के लिए भाग दौड़ शुरू कर चुके हैैं। छोटी बहन ने बीए प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया है।
वादे तो हुए लेकिन पूरे नहीं हुए
शहीद के पिता राजकुमार का कहना है कि शहीद के नाम पर राजनीति तो की गई लेकिन परिवार के लिए जो भी वादे किए गए, वह एक साल पूरा होने के बाद भी पूरे नहीं हुए। मांगे तो बहुत हैं, लेकिन घर तक सड़क, ढाई एकड़ भूमि, छोटे बेटे अमरेश को नौकरी दिया जाना अति आवश्यक है। गांव में शहीद की प्रतिमा एवं उनके नाम का एक गेट बन जाए तो बेहतर होगा, जिसके लिए उस समय जिलाधिकारी से लेकर नेताओं तक ने वादा किया था। ग्राम प्रधान टुडि़हार मथुरा प्रसाद ने बताया कि ग्राम पंचायत स्तर पर जो भी सुविधाएं हो सकती हैं, वह परिवार के लिए किया जा रहा है। रही बात शहीद के घर तक रास्ते की तो उसका भी निर्माण कार्य शुरू हुआ था, लेकिन आपत्ति के कारण सड़क का निर्माण कार्य रोक दिया गया।
वीर नारी का करें सम्मान
आइए, देश के लिए अपनी जान गंवाने वाले अमर शहीद मुहेश यादव की वीर पत्नी और उनके बच्चों का सम्मान करें। उन्हें अपनेपन का अहसास कराएं। यह भी जताएं कि सुख और दुख की घड़ी में देश व समाज उनके साथ खड़ा है। शहीद के सम्मान में होने आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शामिल हों, उनकी शहादत को नमन करें। शहीद के परिवार का गौरव बढ़ाएं।
शासन-प्रशासन से ये है मांग
-शहीद के परिवार के गुजारे के लिए ढाई एकड़ जमीन व आवास।
-गांव में शहीद के नाम विद्यालय और सरकारी अस्पताल।
-शहीद की प्रतिमा एवं गांव के शुरू में शहीद द्वार व सड़क।
-छोटे भाई अमरेश को सेना में नौकरी।
अब तक मिला सहयोग
-परिवार के लिए हैंडपंप लगाया गया।
-घर के सामने दो सोलर साइट।
-एक ट्रांसफार्मर व पांच पोल लगाए गए
-घर तक सड़क निर्माण शुरू हुआ लेकिन गिïट्टी गिराने के बाद कार्य ठप है।