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एससी/एसटी एक्ट में सात वर्ष से कम सजा होने पर बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं : हाईकोर्ट

अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम नंद प्रभा शुक्ला ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सजा सात साल से कम है अत: मामले में विवेचक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करेंगे।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 10:25 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 08:13 AM (IST)
एससी/एसटी एक्ट में सात वर्ष से कम सजा होने पर बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं : हाईकोर्ट
एससी/एसटी एक्ट में सात वर्ष से कम सजा होने पर बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं : हाईकोर्ट

लखनऊ (जेएनएन)। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा है कि एससी/एसटी एक्ट में भी सात साल से कम की सजा पर बिना नोटिस गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में इस बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं। इसका हवाला देते हुए न्यायमूर्ति अजय लांबा व न्यायमूर्ति संजय हरकौली की बेंच ने गोंडा निवासी राजेश मिश्र को विवेचना के दौरान गिरफ्तार न करने का निर्देश दिया है।

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राजेश मिश्रा ने याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ लिखाई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी और मांग की थी कि दौरान विवेचना उन्हें गिरफ्तार न किया जाये। अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम नंद प्रभा शुक्ला ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि सजा सात साल से कम है अत: मामले में विवेचक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करेंगे।
मामला गोंडा का था।

शिवराजी देवी ने 19 अगस्त, 2018 को कांडरे थाने पर याची राजेश मिश्रा व अन्य तीन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराकर कहा था कि वह अनुसूचित जाति की महिला है। 18 अगस्त, 2018 को करीब 11 बजे विपक्षी सुधाकर, राजेश, रमाकांत व श्रीकांत पुरानी रंजिश को लेकर उसके घर चढ़ आये और उसे व उसकी लड़की के जातिसूचक गालियां दीं और लाठी डंडों से मारा पीटा। याची राजेश मिश्रा का कहना था कि घटना बिल्कुल झूठ है और शिवराजी ने गांव की राजनीति के चलते झूठी प्राथमिकी लिखाई है।

हाईकोर्ट में ऐसी याचिकाओं की भरमार
हाईकोर्ट में इन दिनों ऐसे मुकदमों की बाढ़ सी आइ है, जिसमें अभियुक्त उन प्राथमिकियों को चुनौती दे रहे हैं, जिनमें सजा सात साल तक की है। इन प्राथमिकियों में आइपीसी की तमाम धाराओं सहित एससी एसटी एक्ट, आवश्यक वस्तु अधिनियम, गोहत्या अधिनियम आदि की धाराएं शामिल रहती हैं। हाईकोर्ट ऐसे मामलों को इस निर्देश के साथ निस्तारित कर रहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरनेश कुमार के केस में दिये गए फैसले का अनुपालन किया जाये।

क्या है अरनेश कुमार मामले में फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के मामले में दो जुलाई 2014 को फैसला दिया था। इसमें बिना ठोस वजह केवल विवेचक के अधिकार पर गंभीर आपत्ति जताई गई थी। कोर्ट ने कहा था कि जिन केसों में सजा सात साल तक की है, उनमें विवेचक को अपने आप से यह सवाल करना जरूरी है कि आखिर गिरफ्तारी किसलिए आवश्यक है। कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी से पहले अभियुक्त को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया जाए। यदि अभियुक्त नोटिस की शर्तो का पालन करता है, तो उसे दौरान विवेचना गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।


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