Prayagraj Coronavirus Effect : संगमनगरी में गंगा तीरे शवों को दफनाने की परंपरा
डीएम भानुचंद गोस्वामी का कहना है कि तमाम लोग शव दफन करने के लिए परंपराओं का हवाला देते हैैं। हम उनसे अनुरोध कर रहे हैैं कि वो दाह संस्कार करें। इसका असर भी पड़ रहा है। सभी तहसीलों के एसडीएम को सक्रिय कर दिया गया है।
प्रयागराज,जेएनएन। संगमनगरी में गंगा में बहते शव तो नहीं मिले, लेकिन श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ में गंगा तीरे रेती में कई हिंदू परिवारों द्वारा शवों को दफन करने की परंपरा साथ चलती हैै। इन दोनों स्थानों पर दाह संस्कार के लिए घाट भी हैं। परिवारीजन कई बार आर्थिक कारणों और समयाभाव से भी शवों को दफन करते हैं। यहां प्रतापगढ़, जौनपुर तक के लोग भी शव लेकर दफनाने पहुंचते हैैं। अप्रैल-मई में कोरोना के चलते हुई बेतहाशा मौतों के कारण यहां बड़ी संख्या में शव दफनाए गए।
डीएम भानुचंद गोस्वामी का कहना है कि तमाम लोग शव दफन करने के लिए परंपराओं का हवाला देते हैैं। हम उनसे अनुरोध कर रहे हैैं कि वो दाह संस्कार करें। इसका असर भी पड़ रहा है। सभी तहसीलों के एसडीएम को सक्रिय कर दिया गया है।
वहीं, टीकरमाफी आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि सिर्फ पांच साल तक के बच्चे और धर्माचार्यों को ही भू अथवा जल समाधि देने की परंपरा है। इससे इतर सनातन धर्मियों को पार्थिव शरीर गाडऩा अथवा नदी में प्रवाहित नहीं करना चाहिए। इससे आत्मा भटकती रहती है। आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी शवों को दफनाने के खिलाफ हैं। कहते हैं कि अग्नि देवता होते हैं। अग्नि में तारने की शक्ति होती है। निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु, अंत्येष्टि क्रिया के सर्वोत्तम ग्रंथ 'श्राद्ध प्रकाशÓ में पार्थिव शरीर को जलाने का विधान बताया गया है। इसी से आत्मा को मुक्ति मिलती है।
दरअसल, गंगा तीरे रेती में दफन शवों पर रखे गए उड़ते कफन और शवों को खींच निकालने वाले आवारा कुत्तों ने संगमनगरी के इंतजामों को आलोचनाओं का केंद्र बना दिया है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर सक्रिय लोग इसके जरिए मोदी- योगी सरकार पर हमलावर हैैं।
दाह संस्कार का खर्च उठा रहा प्रशासन
पुलिस और एनडीआरएफ टीम लगातार निगरानी कर रही है। शव दफनाने के लिए आए लोगों को समझाकर दाह संस्कार के लिए भेजा जा रहा है। शहरी क्षेत्र में जिन लोगों के पास पैसे नहीं है, उन्हें नगर निगम चार हजार रुपये दे रहा है। धनराशि तत्काल दी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पांच हजार रुपये दिए जा रहे हैं। ग्राम विकास अधिकारी को इसकी जिम्मेदारी दी गई है।