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Sandipan Dham of Kaushambi: द्वापर युग से जुड़ी हैं संदीपन धाम की यादें, श्रीकृष्ण-सुदामा ने ली थी शिक्षा

कौशांबी शोध संस्थान के डा. रसराज बताते हैं कि वर्तमान कौशांबी जनपद में उत्तर दिशा में गंगा नदी के दक्षिणी तट पर संदीपन घाट की प्राचीन प्रतिष्ठा है। कहा जाता है कि यहां संदीपन मुनि आए थे जो श्रीकृष्ण और उनके सखा विप्र सुदामा के गुरु हुआ करते थे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 01:25 PM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 01:25 PM (IST)
Sandipan Dham of Kaushambi: द्वापर युग से जुड़ी हैं संदीपन धाम की यादें, श्रीकृष्ण-सुदामा ने ली थी शिक्षा
कौशांबी के धार्मिक स्‍थल संदीपन धाम का संबंध द्वापर युग से बताया जाता है।

प्रयागराज, जेएनएन। यूपी के कौशांबी जनपद के सिराथू विकास खंड में थाना कोखराज अंतर्गत जीटी रोड पर चाकवन चौराहे से तकरीबन तीन किमी दूर व भरवारी रेलवे स्टेशन से लगभग छह किमी उत्तर में संदीपन घाट स्थित है। गंगा नदी के इस घाट का जुड़ाव द्वापर युग से बताया जाता है। मान्यता है कि यहां पर संदीपन मुनि आए थे, जिनसे श्रीकृष्ण और सुदामा ने यहां पर रहकर शिक्षा प्राप्त की थी। आसपास में इस घाट की काफी मान्यता है। पर्वों पर यहां स्नानार्थियों की काफी भीड़ होती है। रोज सौ-दो सौ लोग यहां आते हैं।

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श्रीकृष्ण-सुदामा के गुरु थे संदीपन मुनि, किया था यहां चौमासा

कौशांबी शोध संस्थान के डा. रसराज बताते हैं कि वर्तमान कौशांबी जनपद में उत्तर दिशा में गंगा नदी के दक्षिणी तट पर संदीपन घाट की प्राचीन प्रतिष्ठा है। कहा जाता है कि कभी यहां संदीपन मुनि का पदार्पण हुआ था जो श्री कृष्ण और उनके सखा विप्र सुदामा के गुरु हुआ करते थे। वैसे तो इनका मुख्य गुरुकुल उज्जैन में माना जाता है किंतु कुछ समय तक कौशांबी के इस घाट पर रहे थे जिसके चलते इस संदीपन धाम अथवा आश्रम भी कहा जाता है।

संदीपन धाम से जुड़ी हैं ये यादें

डा. रसराज ने बताया कि उज्जैन और तत्कालीन वत्स देश (कौशांबी) का बहुत ही घनिष्ट संबंध रहा है। मान्यता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी में बरसात के दिनों में बाढ़ आई तो संदीपन मुनि अपने शिष्यों के साथ वत्स देश चले आए व चातुर्मास यहीं गंगा के तट पर व्यतीत किया था संभवत: तभी से इस घाट का नाम संदीपन मुनि के नाम पर चर्चित हुआ। मान्यता है कि कृष्ण और उनके सखा विप्र सुदामा संदीपन घाट स्थित आश्रम में पढऩे आए थे।

घाट के किनारे मंदिर में विराजमान हैं काफी प्राचीन शिवलिंग

संदीपन घाट पर पुराना शिव मंदिर है जिसमें शिवलिंग विराजमान हैं। लोगों का कहना है कि शिवलिंग तकरीबन दो ढाई सौ साल पुराना है। पास में ही एक चबूतरा बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इसी चबूतरे पर बैठकर मुनि संदीपन शिष्यों को शिक्षा देते थे। गंगा नदी तक जाने के लिए यहां सीढिय़ां बनी हुई हैं। जीर्णशीर्ण हो चुकी सीढिय़ों का करीब दस साल पहले भरवारी के अमहा ग्राम प्रधान हरिशंकर विश्वकर्मा ने पत्नी की स्मृति में जीर्णोद्धार कराया था लेकिन देखरेख के अभाव में जगह-जगह टूट चुकी है। इस घाट तक जाने के लिए पक्की रोड भी बनी है। कुछ समय पूर्व चायल विधायक संजय गुप्ता के बाबा सरजूदास ने घाट के समीप एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। यहां एक धर्मशाला भी है। जहां पर दूर-दराज से आने वाले लोग ठहरते हैं। रविवार को यहां स्नानार्थियों की खासा भीड़ होती है। पर्वों पर मेले जैसा दृश्य रहता है।

कुंडा के कृष्ण वन में लकडिय़ां तोडऩे जाते थे श्रीकृष्ण-सुदामा

डा.रसराज के अनुसार संदीपन घाट के दूसरी ओर प्रतापगढ़ जनपद की कुंडा तहसील में बेंती के पास गंगा के किनारे एक जंगल है जिसे कृष्णवन के नाम से जाना जाता है। संदीपन धाम का संबंध कृष्ण वन से भी जोड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि संदीपन आश्रम में पढ़ाई के दौरान कृष्ण-सुदामा व अन्य शिष्य यहां लकडिय़ां तोडऩे जाते थे। सुदामा द्वारा कृष्ण के हिस्से का चना खाने की कहानी यहीं से जुड़ी बताई जाती है। कुंडा जाने के लिए पहले संदीपन घाट से नाव से गंगा पार करते थे किंतु अब घाट के बगल से ही कोखराज-कानपुर हाईवे पर गंगा पर पुल बन गया है।


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