शादी की अनुमति लेने का नियम धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार का हनन, वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया अनुचित
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार बिना शासनादेश जारी किए धार्मिक समारोह के आयोजन पर शर्तें नहीं थोप सकती। संविधान का अनुच्छेद-25 धर्म की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद-26 धार्मिक परंपरा के अनुसार समारोह के आयोजन की अनुमति देता है। अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रदेश के मुख्य सचिव की ओर से दिए गए शादी या विवाह समारोह आयोजन करने की अनुमति लेने की बाध्यता के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष एएन त्रिपाठी ने अनुचित बताया है। कहा कि आदेश गैर कानूनी, धार्मिक अधिकारों व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन है। मुख्यमंत्री ऐसे आदेश को वापस लें। कहा कि शादी के लिए अनुमति लेने का मुख्य सचिव की ओर से 23 नवंबर, 2020 को जारी आदेश कानून नहीं है। यह केंद्र सरकार के 30 सितंबर, 2020 के कोविड-19 दिशा-निर्देशों के प्रतिकूल है।
बिना शासनादेश शर्तें नहीं थोप सकती सरकार
वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी नेे कहा कि राज्य सरकार बिना शासनादेश जारी किए धार्मिक समारोह के आयोजन पर शर्तें नहीं थोप सकती। संविधान का अनुच्छेद-25 धर्म की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद-26 धार्मिक परंपरा के अनुसार समारोह के आयोजन की अनुमति देता है। अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। राज्य सरकार को सांविधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-7 शादी समारोह में परंपरा के अनुसार कार्यक्रम आयोजन करने की व्यवस्था देता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सप्तपदी को धर्म का अटूट हिस्सा माना है। विवाह धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार में शामिल है। सरकार को अनुमति लेने के नाम पर हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के संक्रमण पर काबू पाने और इसके प्रसार को रोकने के इरादे से शासन स्तर से कई तरह की गतिविधयोंं पर या तो प्रतिबंध लगाया गया है या फिर आयोजन को सीमित किया गया है। इसी तरह शादी समारोह आयोजित करनेे से पहले अनुमति लेने और सौ ही लोगों के शामिल होने की बाध्यता भी है।