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बस में पूरी करेंगे अधकचरी नींद तो चालक को 'झपकी' आना लाजिमी Prayagraj News

रोडवेज के चालक व कंडक्टर की सीटें ही बिस्तर बनती है। नींद पूरी न होने पर उन्हें झपकी तो आ ही जाएगी।बस स्टेशनों पर रेस्ट रूम के दावे पर बस छोड़कर न हटने का नियम हावी है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 06:18 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 06:18 PM (IST)
बस में पूरी करेंगे अधकचरी नींद तो चालक को 'झपकी' आना लाजिमी Prayagraj News
बस में पूरी करेंगे अधकचरी नींद तो चालक को 'झपकी' आना लाजिमी Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। बस चालकों की झपकी अक्सर कई लोगों को मौत की नींद सुला देती है। पूर्व में हो चुकी छोटी और बड़ी घटनाएं इसकी गवाह हैं। जानते हैं क्यों? इस खबर के साथ छपी फोटो को देखकर आपको बस दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण का अंदाजा लग सकता है। लंबी दूरी के सफर पर घंटों बस चलाने वाले चालकों को कहीं पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता। बसें छोड़कर न हटने का नियम भी उन पर हावी रहता है। ऐसे में उन्हें सीटों को ही बिस्तर भी बनाना पड़ता है।

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रोडवेज के रेस्ट रूम की व्यवस्था का दिख रहा आइना 

लीडर रोड बस स्टैंड पर झांसी डिपो की बस में सोते मिले चालक रविंदर सिंह और कंडक्टर शिवराम की अधकचरी नींद के नजारे ने उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम (रोडवेज) के रेस्ट रूम की व्यवस्था को आइना दिखाया। झांसी से प्रयागराज के बीच 400 किलोमीटर से अधिक की दूरी है। इस रास्ते में बीच में सबसे बड़ा स्टेशन कानपुर का झकरकटी है। झकरकटी में बस का स्टापेज ढाई घंटे का है। वहां भी कंडक्टर और चालक को थोड़ा वक्त निकालकर बस में ही सोना पड़ता है। अधकचरी नींद के हालात केवल इस रूट पर ही नहीं, 300 से 500 किलोमीटर की दूरी वाले दो जिलों के बीच की भी यही दशा है। वास्तविकता यह है कि कहीं रेस्ट रूम की उचित व्यवस्था न होने से ड्राइवरों की नींद पूरी नहीं हो पाती। उन्हें या तो यात्री प्रतीक्षालय में कुर्सियों पर सोना पड़ता है या फिर बस की सीटों को ही बिस्तर बनाना पड़ता है। 

कार्यशाला में बने रेस्ट रूम में भी व्यवस्थाएं अधूरी 

प्रयागराज के सिविल लाइंस बस स्टेशन तथा राजापुर स्थित कार्यशाला में बने रेस्ट रूम में भी व्यवस्थाएं अधूरी हैं। यहां चौकियों पर गद्दे तो पड़े हैैं लेकिन उन पर चादरें नहीं है। कूलर व पंखे गर्म हवा देते हैं। जबकि विभागीय अधिकारियों का दावा है कि रेस्ट रूम बनाए गए हैं। वहां चालक और कंडक्टर आराम भी करते हैं। पंखे और कूलर के इंतजाम हैं। हालांकि बसों में फिर भी सोने की विवशता अधिकारियों के दावे को इसलिए बौना कर रही है क्योंकि बसें छोड़कर न हटने का नियम भी चालक व कंडक्टर पर हावी रहता है।


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