इतना नरम कि मुंह में रखते ही घुल जाता है देहाती का यह खास रसगुल्ला
रामसेवक यादव ऊर्फ देहाती ने सन् 1984 में सीएमपी महाविद्यालय और बैरहना के बीच दोनों रेलवे डॉट पुल के मध्य महात्मा गांधी मार्ग पर एक छोटी से दुकान खोली और वहां रसगुल्ला बनाकर बेचने लगे। कुछ ही दिनों में वहां रसगुल्ला खाने वालों की भीड़ लगने लगी।
प्रयागराज, जेएनएन। शुद्ध, स्वादिष्ट और सुपाच्य। काटने या चबाने की तो जरूरत ही नहीं, इतना साफ्ट कि मुंह में रखते ही खुद ही घुल जाता है। यहांं बात हो रही है देहाती के रसगुल्ले की जिसका स्वाद तमाम शहरियों की जुबान पर चढ़ गया है। दुकान की ओर से गुजरने पर तो लोग रसगुल्ला खाना नहीं भूलते।
बैरहना डॉट पुल के पास खोली थी पहली दुकान
ग्राम बारी बरबोली, सोरांव के रहने वाले रामसेवक यादव ऊर्फ देहाती ने सन् 1984 में सीएमपी महाविद्यालय और बैरहना के बीच दोनों रेलवे डॉट पुल के मध्य महात्मा गांधी मार्ग पर एक छोटी से दुकान खोली और वहां रसगुल्ला बनाकर बेचने लगे। कुछ ही दिनों में वहां रसगुल्ला खाने वालों की भीड़ लगने लगी। रामसेवक को लोग देहाती के नाम से पुकारते थे सो उनकी दुकान का नाम देहाती रसगुल्ला वाला पड़ गया। लोग दुकान पर खड़े होकर खाते और पैक करवाकर ले भी जाते।
मधवापुर सब्जी मंडी में बेटों ने खोली दूसरी दुकान
लोगों को देहाती के रसगुल्ले का स्वाद इतना भाया कि रसगुल्ला तैयार होते ही दुकान पर भीड़ लग जाती। सड़क पटरी पर खड़े होकर खाने के चलते जाम लगने लगा। सन् 2012 में रामसेवक की मौत के बाद उनके तीनों लड़कों विजय, अजय, अमित दुकान को संभालने लगे। जाम की समस्या के चलते 2017 में मधवापुर सब्जी मंडी में दूसरी दुकान खोल ली और बांटने लगे रसगुल्लेे का स्वाद। हालांकि पुरानी दुकान भी अभी चल रही है।
शुद्ध खोवा का करते हैं इस्तेमाल, कोई पाउडर नहीं
मधवापुर सब्जी मंडी वाली दुकान के संचालक और स्व.रामसेवक यादव के बड़े लड़के विजय यादव बताते हैं कि उनके यहां रसगुल्ला बनाने में केवल शुद्ध खोवे और मैदा का प्रयोग किया जाता है। किसी भी प्रकार के पाउडर का इस्तेमाल नहीं करते हैं। शुद्ध, ताजा और गरमागरम रसगुल्ला ही देहाती के रसगुल्ले की पहचान है।
दो रुपये पीस से हुई शुरूआत, अब एक पीस के 15 रुपये
रामसेवक यादव ने वर्ष 1984 के आसपास दुकान की शुरूआत की थी तो दो रुपये पीस रसगुल्ला बेचते थे, वर्तमान में देहाती का रसगुल्ला 15 रुपये प्रति पीस मिलता है। रसगुल्ला घर ले जाने के लिए मिट्टी की बनी मटकी में पैक करके देते हैं। विजय का कहना है कि महंगाई के चलते पैकिंग चार्ज लेने विचार कर रहे हैं जो बहुत ही कम होगा।
गरमागरम और नरम रसगुल्ला है इनकी खासियत
विजय यादव का कहना है कि उनके यहां हमेशा नरम और गरम रसगुल्ला ही मिलता है, यही उनकी विशेषता भी है। दुकान में ही बनाया जाता है और गरमागरम सर्व किया जाता है। बनाने से परोसने तक तकरीबन दर्जन भर कर्मचारी उनके सहयोग में रहते हैं।
हर साल अप्रैल से जून माह तक बंद रहती है दुकान :
अप्रैल से लेकर जून माह तक दुकान बंद रहती है। इस दौरान लोगों को यहां का बना रसगुल्ला नहीं मिल पाता है। विजय बताते हैं कि गर्मी के दिनों में दूध की उपलब्धता कम हो जाती है जिसके चलते पर्याप्त मात्रा में खोवा नहीं मिल पाता है। ऐसे में तीन माह वे दुकान बंद कर देते हैंं। जुलाई के महीने में बारिश शुरू होने पर दूध उपलब्धता होते ही रसगुल्ला बनना शुरू होता है।