37 साल बाद अब देश की तस्वीर बनेगी 'सरस्वती पत्रिका'
विमल पांडेय, इलाहाबाद : ¨हदी के उन्नयन और विकास के लिए एक बार फिर अब अंतरराष्ट्रीय फलक पर
विमल पांडेय, इलाहाबाद : ¨हदी के उन्नयन और विकास के लिए एक बार फिर अब अंतरराष्ट्रीय फलक पर स्थान अर्जित करने वाली पत्रिका 'सरस्वती' साहित्य के बीज अंकुरित करेगी। इंडियन प्रेस पब्लिकेशन द्वारा उक्त पत्रिका के छापने का फैसला करने के बाद यह उम्मीद बनी है। 117 साल पहले परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े ¨हदुस्तान को भाषिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता दिलाने में सरस्वती पत्रिका की अहम भूमिका रही है। इसका प्रकाशन 37 साल बाद अब फिर जनवरी 2018 में शुरू होने जा रहा है। फिलहाल इसे त्रैमासिक प्रकाशित किया जाएगा। आर्थिक मजबूती मिलते ही उक्त पत्रिका का प्रकाशन मासिक होगा।
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सरस्वती पत्रिका का अब तक का सफर :
¨हदी साहित्य के विकास और आधुनिक काल की शुरुआत करने वाली सरस्वती पत्रिका का सबसे पहला प्रकाशन जनवरी 1900 में हुआ था। तब इसके संपादन मंडल में बाबू श्याम सुंदर दास, बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री, बाबू राधा कृष्ण, जगन्नाथ रत्नाकर और पंडित किशोरी लाल विश्वकर्मा आदि थे। सन् 1901 में उक्त पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी श्याम सुंदर दास को मिल गई। इन्होंने पत्रिका के संपादन के लिए कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था। सन् 1903 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीस रुपये मासिक शुल्क पर उक्त पत्रिका का संपादन शुरू किया। यह समय ंिहंदी साहित्य का स्वर्ण काल बना। आचार्य जी के कार्यकाल में खड़ी बोली को एक नया मुकाम हासिल हुआ। ¨हदी भाषा को परिमार्जित, परिष्कृत करने की जिम्मेदारी भी आचार्य जी ने उठाई। सन् 1920 तक आचार्य जी ने उक्त पत्रिका का संपादन किया। उनके बाद पदुम लाल पुन्ना लाल बख्सी, श्रीनारायण चतुर्वेदी, आदि ने उक्त पत्रिका का संपादन लंबे समय तक किया। सरस्वती पत्रिका के अंतिम संपादक निशीथ राय रहे। सन् 1980 में धनाभाव के कारण उक्त पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया था।
इंडियन प्रेस की होगी अहम भूमिका :
आजादी के पूर्व से ही उक्त पत्रिका के प्रकाशन की जिम्मेदारी इंडियन प्रेस इलाहाबाद ने संभाल रखी थी। इंडियन प्रेस के व्यवस्थापक एसपी घोष और कल्याण घोष ने उक्त पत्रिका के अब फिर प्रकाशन के लिए आवश्यक अर्हता पूरी कर दी है। पत्रिका का संपादक केंद्रीय ¨हदी संस्थान आगरा के ¨हदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डा. देवेंद्र शुक्ल को बनाया गया है। वहीं सह संपादक इलाहाबाद के डा. अनुपम परिहार को बनाया गया है।
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विदेश में भी होंगे सरस्वती के स्वर:
सरस्वती पत्रिका के नवनियुक्त संपादक डा. देवेंद्र शुक्ल कहते हैं कि सरस्वती में साहित्यिक एवं वैचारिक वैश्वीकरण के साथ-साथ आधुनिक चिंतन के संदर्भ भी होंगे। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सूरीनाम, फिजी, मारीशस, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, जर्मनी, हंगरी,चीन, जापान, टर्की, पोलैंड ग्रीस आदि देशों के भारतीय प्रवासी और ¨हदी साहित्यकारों के आलेखों का प्रतिनिधित्व होगा।
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साहित्य सर्जकों की जुबानी :
ंिहंदी के उन्नयन और विकास में सरस्वती पत्रिका का अहम योगदान रहा है। इस पत्रिका का पुन: प्रकाशन निश्चित तौर पर ¨हदी के एक नए युग की शुरुआत है।
अनुपम परिहार, साहित्यकार
¨हदी भाषा के विकास के लिए उक्त पत्रिका का प्रकाशन मील का पत्थर साबित होगा। साहित्यकारों को इसके पोषण में अहम जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
रविनंदन सिंह साहित्यकार
37 साल बाद उक्त प्राचीन पत्रिका का प्रकाशन सुखद है। अब उक्त पत्रिका के प्रकाशन में किसी प्रकार की अड़चन न आए, इसके लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
राजेंद्र कुमार वरिष्ठ साहित्यकार
¨हदी साहित्य के इतिहास में सरस्वती पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उक्त पत्रिका का प्रकाशन बेहतर हो इसकी शुभकामनाएं।
अमित राजपूत, युवा स्तंभकार