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Psychiatrists की प्रयागराज में कमी, 60 लाख की आबादी में सिर्फ एक के ही भरोसे है चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था

मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय यानी काल्विन अस्पताल में मनोचिकित्सक डा. राकेश पासवान की तैनाती हैं। वहीं अन्य किसी सरकारी अस्पताल में मनोचिकित्सक नहीं हैं। डा. राकेश पासवान की जिम्मेदारी अस्पताल आने वाले मरीजों के इलाज के अलावा अन्‍य बहुत सारी हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 25 Sep 2021 11:56 AM (IST)Updated: Sat, 25 Sep 2021 11:56 AM (IST)
Psychiatrists की प्रयागराज में कमी, 60 लाख की आबादी में सिर्फ एक के ही भरोसे है चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था
प्रयागराज में मनोचिकित्‍सा संबंधी बीमारी वाले मरीजों को परेशानी होती है। क्‍योंकि सिर्फ एक ही मनोचिकित्‍सक की तैनाती है।

प्रयागराज, जेएनएन। मानसिक उलझन, काम के तनाव और मोबाइल फोन से बच्चों में बढ़ रहे फोनोफोबिया जैसे रोग का इलाज मनोचिकित्सक ही करते हैं। हालांकि प्रयागराज में 60 लाख की आबादी के बीच मनोचिकित्सक का बड़ा अभाव है। सरकारी तौर पर यहां केवल एक मनोचिकित्सक की तैनाती है। जिले के सीएमओ से लेेकर राजधानी लखनऊ में बैठे स्वास्थ्य महानिदेशक तक इसकी अनदेखी कर रहे हैं। आइए जानते हैं एक डाक्टर पर है कितनी बड़ी जिम्मेदारी।

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सिर्फ काल्विन अस्‍पताल में ही मनोचिकित्‍सक तैनात हैं

मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय यानी काल्विन अस्पताल में मनोचिकित्सक डा. राकेश पासवान की तैनाती हैं। अन्य किसी सरकारी अस्पताल में मनोचिकित्सक नहीं हैं। डा. राकेश पासवान की जिम्मेदारी अस्पताल आने वाले मरीजों के इलाज के अलावा बाल संरक्षण गृह, नारी संरक्षण गृह, केंद्रीय कारागार नैनी, जिले के आठ सामुदायिक केंद्र में जाकर मनोदशा खराब वाले मरीजों का इलाज करना है। इन सभी जगह उन्हें जाना भी पड़ता है लेकिन टाइम शेड्यूल निर्धारित है इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं होती।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह है मानक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार एक लाख की आबादी पर प्वाइंट सात फीसद मनोचिकित्सक होने चाहिए। इस हिसाब से एक लाख की आबादी पर एक डाक्टर का भी औसत नहीं है लेकिन व्यावहारिक तौर पर एक लाख की आबादी पर कम से कम एक डाक्टर तो होने ही चाहिए।

क्या होती है दिक्कत

साठ लाख की आबादी पर केवल एक मनोचिकित्सक होने से मरीजों को ही दिक्कत होती है। उन्हें समय पर और उचित उपचार नहीं मिल पाता। डा. राकेश पासवान कहते हैं कि एक मरीज की मानसिक दशा को समझने में उससे बात करने में कम से कम 10 मिनट ताे लगता ही है। ओपीडी में मरीज ज्यादा आ जाते हैं तो एक ही मिनट बात कर सकते हैं। ऐसे में मर्ज की जड़ तक पहुंचना कठिन होता है।

पूरी नहीं हो रही मांग : डाक्‍टर इंदु कनौजिया

काल्विन अस्पताल की प्रमुख चिकित्साधीक्षक डा. इंदु कनौजिया का कहना है कि स्वास्थ्य महानिदेशक को पत्र पूर्व में भेजा जा चुका है जिसमें मनोचिकित्सक की मांग की गई है। अब तक चिकित्सक नहीं मिले हैं। अन्य डाक्टरों की भी कमी अस्पताल में है। जैसे तैसे काम चलाया जा रहा है।


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