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Coronavirus ने हमारी सांख्यकीय, डेटा आधारित कमी को उजागर किया है : प्रोफेसर भगत Prayagraj News

झूंसी स्थित जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्‍थान में बेबीनार का आयोजन हुआ। इसमें आइआइपीएस मुंबई के माइग्रेशन और अर्बन डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर आरबी भगत भी शामिल हुए।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 03:59 PM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 03:59 PM (IST)
Coronavirus ने हमारी सांख्यकीय, डेटा आधारित कमी को उजागर किया है : प्रोफेसर भगत Prayagraj News
Coronavirus ने हमारी सांख्यकीय, डेटा आधारित कमी को उजागर किया है : प्रोफेसर भगत Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस महामारी ने हमारी सांख्यकीय और डेटा आधारित कमी को भी उजागर किया है। इसके बिना किसी बड़े राहत अभियान की कल्पना और उसे साकार नहीं किया जा सकता। यह कहना है आइआइपीएस मुंबई के माइग्रेशन और अर्बन डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर आरबी भगत का।

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जीबी पंत संस्‍थान में बेबीनार का आयोजन

प्रोफेसर भगत झूंसी स्थित जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्‍थान में आयोजित बेबिनार में बतौर मुख्‍य वक्‍ता बोल रहे थे। पंत संस्थान की ओर से 24 मई से 'समर स्कूल ऑन माइग्रेंट रियलटीज़' आयोजित किया जा रहा है। इसका समापन तीन जून को होगा। इसी के तहत वेबिनार का आयोजन हुआ।

जो प्रवासी सड़कों पर दिख रहे, वे अधिकतर मौसमी व अस्थाई हैं

प्रोफेसर आरबी भगत ने बताया कि वर्तमान में शहरों का स्वरूप मोटे तौर पर के प्रवासियों के लिए बहिष्करण को बढ़ावा देता है। प्रवासी कोई एक रूप समूह न होकर अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं । वर्तमान में जो प्रवासी सड़कों पर नज़र आ रहे हैं वे अधिकतर मौसमी और अस्थाई प्रवासी हैं। इनका शहरों में कोई स्थायी ठिकाना नहीं है और ये सामाजिक रूप से निम्न पृष्टभूमि से संबंधित हैं।

सरकार के पास इनसे संबंधित ठोस पालिसी का अभाव

उन्होंने बताया कि एक सर्वें के अनुसार असंगठित क्षेत्र के लगभग 40 फीसद कामगार प्रवासी मजदूर हैं, जिनमें 30 फीसद दिहाड़ी मजदूर हैं। हालांकि अभी तक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर सरकार के पास इनसे संबंधित किसी ठोस पालिसी का अभाव है। उन्होंने अनुमान लगाया कि मोटे तौर पर 15 मिलियन से अधिक मौसमी प्रवासी हैं। कम से कम 25 मिलियन अर्ध-स्थायी प्रवासी हैं जो एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करते हैं और ये समाज के गरीब वर्गों से संबंधित हैं।

प्रवासियों की सुरक्षा के बने कानून अप्रभावी साबित हुए हैं

उन्होंने उल्लेख किया कि दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार और अन्य राज्यों में प्रवासियों के प्रमुख प्रेषक, और सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग तीन मिलियन प्रवासी यूपी लौट आए हैं और दो मिलियन प्रवासी बिहार लौट आए हैं। हालांकि कई और प्रवासियों को न केवल इस राज्य बल्कि अन्य राज्यों में भी वापस जाना चाहिए। अभी तक जो भी कानून इन प्रवासियों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, चाहे वो इंटर स्टेट माइग्रेट वर्कर्स एक्ट हों या बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट, वह अप्रभावी साबित हुए हैं। हमें माइग्रेशन के पीछे की सामाजिक कार्यप्रणाली को समझने की जरूरत है।

ऐसा करके ग्लोबल से लोकल की अवधारणा साकार होगी

उन्होंने बताया कि आगे आने वाले समय में हम इन मजदूरों को केवल मनरेगा जैसी योजनाओं के सहारे नहीं छोड़ सकते हैं। हमें इन कुशल और अर्धकुशल कारीगरों को अपने आसपास काम देने योजनाओं पर सिरे से काम करने की जरूरत हैं तभी हम ग्लोबल से लोकल की अवधारणा को साकार कर सकेंगे।

आपदा के विभिन्न आयामों पर गंभीरता से सोचें : बद्री नारायण

इससे पूर्व बेबिनार की शुरुआत संस्थान के डायरेक्टर प्रो. बद्री नारायण ने की। उन्होंने इसके परिचय और महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कोरोना से प्रभावित अधिकतर मजदूर उत्तर भारत से हैं इसलिए हमारी यह अकादमिक और नैतिक जिम्मेदारी है कि हम इस आपदा के विभिन्न आयामों पर गंभीरता से सोचें। वेबिनार का संचालन डॉ. कुनाल केशरी ने किया तथा तकनीकी सहयोग देवब्रत सिंह ने किया। इसके अलावा संस्थान से फैकल्टी प्रोफेसर जी सी रथ, डॉ अर्चना सिंह, डॉ चंद्रया गोपनी एवम विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के तमाम प्रतिभागी मौजूद रहे।


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