आप भी जानें, ब्रिटिश सरकार ने इलाहाबाद में ईस्ट इंडिया कंपनी से कमान आज ही के दिन अपने हाथ में ली थी
बात 19वीं सदी की है जब देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। 1857 की क्रांति हुई। उस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपना रुख बदला। देशवासियों से माफी मांगने के साथ ही विकास का वादा करते हुए देश का शासन अपने हाथों में लेने का फैसला किया।
प्रयागराज, [प्रमोद यादव]। प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के लिए आज का दिन यानी एक नवंबर इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इसी दिन प्रयागराज एक दिन के लिए देश की राजधानी बना था। इस घटना का गवाह यमुना किनारे स्थित मिंटो पार्क है। पार्क परिसर में उस घटना की याद में स्मारक भी बना हुआ है। आजादी के बाद इस पार्क का नाम बदलकर पंडित मदन मोहन मालवीय रखा गया लेकिन लोगों की जुबान आज भी यह मिंटो पार्क ही है।
प्रयागराज के मिंटो पार्क में महारानी विक्टोरिया का पढ़ा गया था पत्र
बात 19वीं सदी की है, जब देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। उसके अत्याचार से जगह-जगह आजादी के लिए आंदोलन होने लगे थे। उसी के फलस्वरूप 1857 की क्रांति हुई। उस क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपना रुख बदला और देशवासियों से माफी मांगने के साथ ही विकास का वादा करते हुए देश का शासन अपने हाथों में लेने का फैसला किया। उस दौरान देश की राजधानी कोलकाता हुआ करती थी। सत्ता हस्तांतरण होने के लिए महारानी विक्टोरिया ने एक पत्र भेजा। वह पत्र प्रयागराज स्थित यमुना किनारे मिंटो पार्क में एक नवंबर 1858 को ब्रिटिश हुकूमत के पहले वायसराय लार्ड केनिंग ने पढ़ा था।
जानें, क्या कहते हैं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व इतिहासकार योगेश्वर तिवारी बताते हैं सत्ता हस्तांतरण का यह पत्र एक प्रकार से माफीनामा था। महारानी विक्टोरिया ने यह देशवाशियों से माफी मांगते हुए देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली। इस घटना के बाद देश भर में ब्रिटिश क्राउन का शासन हो गया था। उस एक दिन देश की राजधानी कोलकाता से प्रयागराज शिफ्ट हो गई थी। इस शहर को देश की राजधानी बनने का गौरव एक दिन के लिए मिला। उसके बाद देश की राजधानी दिल्ली बनाई गई। जबकि प्रयागराज को संयुक्त प्रांत की राजधानी बनाया गया।
1910 में लार्ड मिंटो ने इसे पार्क में बदल दिया था
इसी घटना के बाद से ब्रिटिश क्राउन का देश में प्रत्यक्ष रूप से शासन शुरू हो गया था। फिर कई वर्षों तक यह स्थल वीरान रहा। 1910 में तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड मिंटो ने इसे पार्क में बदल दिया। यहां पर अंग्रेजों ने संगमरमर का एक स्मारक भी बनावाया और पार्क का नामकरण मिंटो पार्क हुआ। इस पार्क को स्थापित करने का सुझाव पंडित मदन मोहन मालवीय ने दिया था। इसलिए इस पार्क का नाम आजादी के बाद बदलकर पंडित मदन मोहन मालवीय कर दिया गया था। अब यह वन विभाग के अधीन है और यहां पर जिला वन अधिकारी का कार्यालय है।