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Prayagraj Magh Mela 2021: माघी पूर्णिमा पर पूर्वजों को नमन कर माघ मेला से प्रस्थान कर रहे कल्पवासी

Prayagraj Magh Mela 2021 प्रयागराज माघ मेला क्षेत्र छोड़ने से पहले स्नान करके आने वाले कल्पवासी तीर्थ पुरोहित के मंत्रोच्चार के बीच पूजन करके पूर्वजों को नमन करके भूलचूक की क्षमा याचना करके भावुक मन से लौट रहे हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 27 Feb 2021 10:32 AM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 10:32 AM (IST)
Prayagraj Magh Mela 2021: माघी पूर्णिमा पर पूर्वजों को नमन कर माघ मेला से प्रस्थान कर रहे कल्पवासी
प्रयागराज माघ मेला में माघ पूर्णिमा का स्‍नान कर कल्‍पवासी वापस घरों को लौटने लगे हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज माघ मेला 2021 में संगम तीरे माह भर से चल रहा कल्पवास माघी पूर्णिमा स्नान पर्व से समाप्त हो रहा है। घर-गृहस्थी से दूर, सुख-सुविधाओं का त्याग करके पौष पूर्णिमा से रेती पर भजन, पूजन करने वाले गृहस्थ शनिवार को गंगा व संगम में पुण्य की डुबकी लगाकर लौट रहे हैं।

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घर लौटने की खुशी है तो संगम स्‍थल छोड़ने का गम भी है

कल्पवासी व श्रद्धालु संगम के अलावा अरैल, गंगा के रामघाट, गंगोली शिवालय, अक्षयवट, काली मार्ग आदि के घाटों पर स्नान करके शिविर समेटने में जुटे हैं। पूर्णिमा तिथि शुक्रवार की दोपहर को लग गई थी। इससे भोर से ही स्नान, दान के बाद कल्पवासियों की वापसी होने लगी। मेला क्षेत्र छोड़ने से पहले स्नान करके आने वाले कल्पवासी  तीर्थ पुरोहित के मंत्रोच्चार के बीच पूजन करके पूर्वजों को नमन करके भूलचूक की क्षमा याचना करके भावुक मन से लौट रहे हैं। उन्हें अपने घर लौटने की खुशी है, साथ ही संगम स्थल को छोड़ने का गम भी सता रहा है।

कुछ महात्‍मा महाशिवरात्रि स्‍नान तक माघ मेला में रुकेंगे

 लौटते समय कल्पवासी संतों से मिले धार्मिक संस्कार, दीक्षा व संगम नगरी में बिताए पल के सुनहरे संस्मरण को साथ ले जा रहे हैं। कल्पवासियों के साथ संत-महात्मा भी अपने मठ-मंदिर रवाना हो रहे हैं। वहीं कुछ महात्मा अभी महाशिवरात्रि तक मेला क्षेत्र में रहेंगे। हालांकि माघ मेला में अब रुकने वालों की संख्या काफी कम है। प्रयागराज रवाना होने वाले अधिकतर महात्मा वृंदावन व हरिद्वार कुंभ में शामिल होने जाएंगे।

कोरोना संक्रमण के कारण माघ मेला को लेकर संशय की स्थिति बनी थी। लेकिन, प्रशासन ने नियमानुसार मेला को बसाया। संत व गृहस्थों ने परंपरा के अनुरूप  कल्पवास किया। अब उसकी विदाई की बेला आ गई है। संतों व कल्पवासियों का शिविर शुक्रवार से ही उखडऩे लगे। सगे-संबंधी सामान समेट में जुटे रहे। प्रसाद स्वरूप उनके साथ साथ लाया गया तुलसी का पौधा व जौ का पौधा जा रहा है। जौ को कल्पवास आरंभ करते समय शिविर के बाहर बोया था, जो पौधा के रूप उसे साथ ले जा रहे हैं। जौ के पौधे को पूजा घर, तिजोरी व अन्य पवित्र स्थल पर रखेंगे।


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