'मौत का कुआं देखने के लिए उमड़ रही एशियाड सर्कस में भीड़, Prayagraj में बच्चों के साथ बडे़ भी उठा रहे लुत्फ
करीब डेढ़ दशक बाद प्रयागराज में फिर सर्कस लगा है। दरअसल आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग तनाव भगाने के लिए मनोरंजन के तरीके खोजते रहते हैं। खासकर वह बच्चे भी जो दिन-रात वीडियो गेम खेलते हैं। यही वजह है कि सर्कस अब फिर शुरू हो गया है।
प्रयागराज, जेएनएन। कभी सर्कस देखने के लिए लोगों में भारी दीवानगी होती थी। एक जमाना था जब सर्कस बेहद पसंद किया जाता था। किसी शहर या कस्बे में सर्कस लगता तो वहां भीड़ उमड़ पड़ती थी। इसकी लोकप्रियता को ऐसे समझ सकते हैं कि सुपरस्टार शाहरूख खान ने करियर के शुरूआत में एक सीरियल में अभिनय किया था जिसका नाम था सर्कस। पिछले करीब एक दशक से सर्कस का क्रेज कम होता गया। इसके कलाकारों के सामने रोजी रोटी की समस्य आ गई। मगर ऐसा नहीं है कि सर्कस को लोग पसंद नहीं करते हैं।
तनाव दूर भगाने को सर्कस देखना पसंद करते हैं लोग
करीब डेढ़ दशक बाद प्रयागराज में फिर सर्कस लगा है। दरअसल, आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग तनाव भगाने के लिए मनोरंजन के तरीके खोजते रहते हैं। खासकर वह बच्चे भी जो दिन-रात तकनीकी के साथ कदमताल कर रहे हैैं। यही वजह है कि सर्कस अब फिर शुरू हो गया है। केपी ग्राउंड में लगे एशियाड सर्कस में उमड़ रही भीड़ इस बात का प्रमाण है कि आज भी सर्कस के प्रति लोगों के भीतर दीवानगी कायम है।
रोमांच की दुनिया में गोते लगाते हैं दर्शक
जमीन से 60 फुट ऊंचाई पर हवाई झूला, मौत के गोले में तीन-तीन मोटर साइकिल चलाना। ईटा बैलेंस, निवार पट्टी, फायर ड्रम, मौत का कुआं, जगलिंग, रोलर बैलेंस और जोकर की हंसी-ठिठोली को लोग बेहद पसंद कर रहे हैैं। प्रबंधक शिव बहादुर ने बताया कि कोविड नियमों के साथ रोजाना तीन शो चलते हैैं। पहला दोपहर एक बजे, दूसरा शो शाम चार बजे और तीसरा रात साढ़े सात बजे। लोगों को यह भी ध्यान रखना होगा कि 30 मार्च को सर्कस समाप्त हो जाएगा। तब तक बच्चे और बड़े रोज रोमांच की दुनिया का लुत्फ उठा सकते हैं।