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Pandit Birju Maharaj: इलाहाबादी अमरूद के दीवाने थे कथक सम्राट बिरजू महाराज

बिरजू महाराज का सीधा जुड़ाव प्रयागराज के हंडिया तहसील अंतर्गत किचकिला ऋषिपुर गांव से रहा है। यहां उनके पूर्वज बसते थे। उनके बाबा ईश्वरी प्रसाद ने इसी गांव में कथक नृत्य की नींव डाली थी और फिर इसी गांव से कथक की धमक देश भर के मंचों तक पहुंची।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 12:54 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 01:19 PM (IST)
Pandit Birju Maharaj: इलाहाबादी अमरूद के दीवाने थे कथक सम्राट बिरजू महाराज
कथक सम्राट बिरजू महाराज का प्रयागराज से गहरा नाता था।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। पौष पूर्णिमा लगने से पहले ही गोलोकवासी हुए कथक सम्राट बिरजू महाराज का जन्म भले ही प्रयागराज में न हुआ हो लेकिन यहां की मिट्टी की सोंधी खूशबू उन्हें बरबस खींच लाती थी। बिरजू महाराज ने कुंभ 2019 में भी आकर अपने 60 कलाकारों के साथ स्पीक मैके संस्था की ओर से आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुुति दी थी। उनकी सबसे खास बात थी कि वे इलाहाबादी अमरूद खूब खाते थे। यहां के अमरूदों की मिठास के वे कायल थे। दिल्ली में भी रहते थे तो प्रयागराज से अपने शिष्यों के आने पर उनसे अमरूद लेकर आने के लिए कहते थे।

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प्रयागराज में हंडिया तहसील के किचकिला ऋषिपुर गांव से रहा है जुड़ाव

बिरजू महाराज का निधन हो गया है। उनका सीधा जुड़ाव प्रयागराज के हंडिया तहसील अंतर्गत किचकिला ऋषिपुर गांव से रहा है। यहां उनके पूर्वज बसते थे। उनके बाबा ईश्वरी प्रसाद ने इसी गांव में कथक नृत्य की नींव डाली थी और फिर इसी गांव से कथक की धमक देश भर के मंचों तक पहुंची।

70 के दशक में कई बार बिरजू महाराज यहां आ चुके हैं : उर्मिला शर्मा

बिरजू महाराज की शिष्या उर्मिला शर्मा बताती हैं कि गुरु महाराज का आगमन यहां कई बार हुआ। 70 के दशक में वे तीन से चार बार आ चुके हैं। 1983 में उनकी वृद्ध मां महादेवी, आई थीं। कहती हैं कि वह मेरे ही बिजली घर स्थित रेलवे के क्वार्टर में ठहरी थीं, उनकी तबीयत खराब हो गई थी। इसकी सूचना बिरजू महाराज को फोन करके दिल्ली में दी गई थी। पांच अगस्त 1983 की रात महादेवी का स्वर्गवास हो गया तो जानकारी मिलने पर बिरजू महाराज उनके अंतिम संस्कार में आए थे।

कथक केंद्र की स्थापना में हुए थे शामिल

प्रयागराज के सर्कुलर रोड पर कथक केंद्र का संचालन होता है। इसकी निदेशक उर्मिला शर्मा बताती हैं कि गुरु महाराज ने ही आकर इसकी स्थापना अपने हाथों से की थी। कहती हैं कि उनकी यादें आज भी मन मस्तिष्क में रची बसी हैं। वे अक्सर प्रयागराज में कथक को बढ़ावा देने की बात करते थे और कथक केंद्र से निकलने वाले छात्र छात्राओं से बात भी करते थे।


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