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स्वयंसेवकों को रोजगार देने के काबिल बनाने में जुटा एनएसएस Prayagraj News

एनएसएस की तरफ से आयोजित आत्मनिर्भर भारत में उद्यमिता विकास में युवा स्वयंसेवकों को सूक्ष्म लघु मध्यम उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत रोजगार सृजन के लिए जोखिम उठाने व सरकारी योजनाओं के लिए दिए जाने वाले बैंक लोन की प्रक्रिया पात्रता सब्सिडी पेपर वर्क आदि के बारे में जानकारी दी।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 09:16 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 09:16 AM (IST)
स्वयंसेवकों को रोजगार देने के काबिल बनाने में जुटा एनएसएस Prayagraj News
राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) से जुड़े स्वयंसेवकों को अब रोजगार देने के काबिल बनाने की कवायद की जा रही है।

प्रयागराज,जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) से जुड़े स्वयंसेवकों को अब रोजगार देने के काबिल बनाने की कवायद की जा रही है। यही वजह है कि स्वयंसेवकों के लिए वेबिनार का आयोजन किया गया। राजीव गांधी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ यूथ डेवेलपमेंट व एनएसएस की तरफ से आयोजित आत्मनिर्भर भारत में उद्यमिता विकास में युवा स्वयंसेवकों के लिए अवसर विषयक वेबिनार में युवा प्रशिक्षक अभिनव ठाकुर और दीपक शर्मा ने छात्रों को सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत रोजगार सृजन के लिए जोखिम उठाने व सरकारी योजनाओं के लिए दिए जाने वाले बैंक लोन की प्रक्रिया, पात्रता, सब्सिडी, पेपर वर्क आदि के बारे में जानकारी दी।

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1893 में शिकागो के धर्म संसद पर भी मंथन

एनएसएस की कार्यक्रम समन्वयक डॉ. मंजू सिंह के नेतृत्व में कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सुरभि त्रिपाठी, डॉ अंजना श्रीवास्तव के निर्देशन में यह आयोजन हुआ। इस दौरान स्वामी विवेकानंद के आदर्शों और उनके चिंतन का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया गया। छात्रा रीशु ने बताया आसाधारण प्रतिभा के धनी स्वामी विवेकानंद के नाम सुनते ही मन में जोश से कुछ करने की एक अदम्य इच्छाशक्ति जाग जाती है।  दिक्षा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 11 सितंबर 1893 को शिकागो के धर्म संसद का अपना महत्व है। एक भारतीय जब विश्व में अपने पहले शब्द की शुरुआत करता है- मेरे प्यारे अमेरिकी भाइयों-बहनों...। तो पूरा संसद कुछ समय तक तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा।

महामारी में वैदिक संस्कृति ने छोड़ी अमिट छाप

साक्षी यादव ने कहा आज भी हम कोविड महामरी के दौर में उनके इस विचार की सार्थकता को देख सकते हैं। जहां पूरा विश्व एक साथ आकर सामना कर रहा है। स्वामीजी के इस वक्तव्य ने वैश्विक पटल पर वैदिक संस्कृति की एक नई छाप छोड़ी। इससे विदेशों में भी इस महान संस्कृति के बारे में जानने को उत्सुक हुए। आकांक्षा ने हम धन्य है जिस देश में  सहनशीलता सर्वाधिक है और जो किसी भी धर्म के दबे कुचले लोगों को आसरा देता है। रुपा ने कहा कि  स्वामी जी का हिंदू धर्म के महत्व को वैश्विक पटल पर रखने में अभूतपर्व योगदान है।


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