अपने भीतर के रावण को मारने की जरूरत : विभूति
जागरण संवाददाता प्रयागराज दशहरा के उपलक्ष्य में सर्जनपीठ संस्था ने एक आतर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक सेमिनार का आयोजन किया। इसमें कहा गया कि रावण के पुतले को हम लोग दशहरे के अवसर पर हर साल जलाते हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि हम अपने अंदर के रावण को जलाएं।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : दशहरा के उपलक्ष्य में सर्जनपीठ संस्था ने हम अपने भीतर के रावण को क्यों नहीं जला पाते विषय पर एक आतर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया। अध्यक्षता कर रहे हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र ने कहा कि मनुष्य के भीतर की आसुरी प्रवृत्ति समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। लेकिन, अपने मन का भ्रम मिटाने के लिए वह प्रतिवर्ष रावण के पुतले को जलाता है। जबकि अपने भीतर के रावण को मारने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार रमाशकर श्रीवास्तव ने कहा कि काम, क्रोध, मद, लोभादिक के रूप में हमारे भीतर का रावण मानवीय मूल्यों को ध्वस्त करता आ रहा है।
सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुरेश सिंह यादव ने कहा कि हम अपने व्यष्टिवादी आचरण से अपने भीतर के रावण को संजीवनी देते रहते हैं। आयोजक आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पांडेय ने कहा, आज लगभग प्रत्येक व्यक्ति चरित्र-स्तर पर दुर्बल और शिथिल दिख रहा है। यही कारण है कि वह अपने भीतर के रावण को मारने की जगह निर्जीव पुतले का दहन कर अपने कृत्रिम पुरुषार्थ का परिचय सदियों से देता आ रहा है। डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने कहा, आत्मावलोकन द्वारा दुष्प्रवृत्तिरूपी रावण का दहन संभव है।
इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार सुधीर अग्निहोत्री, डॉ. कृपाशकर पांडेय, निशा पांडेय, लेखक राघवेंद्र कुमार 'राघव', आदित्य त्रिपाठी, डॉ. संगीता श्रीवास्तव, उर्वशी उपाध्याय 'प्रेरणा', आरती जायसवाल, डॉ. पूíणमा मालवीय ने विचार व्यक्त किए।