Navratri 2020 : यहां दिख रही हिंदू-मुस्लिम एकता, माता की चुनरी पर सद्भावना का रंग चढ़़ाने में जुटे हैं हुनरमंद
Navratri 2020 प्रयागराज के मऊआइमा इलाके में मां दुर्गा को अर्पित की जाने वाली चुनरी पर सद्भावना का रंग मुस्लिम परिवार के लोग चढ़ा रहे हैं। यहां के कई गांवों में यह पुश्तैनी धंधा है। शारदीय नवरात्र में चुनरी की बढ़ती मांग से लालगोपालगंज के सब्बाग बिरादरी में उत्साह है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज शहर से गंगा नदी पर बने पुल से होते हुए आप यहां पहुंच सकते हैं। यहां पहुंचने पर आपको भी हिंदू-मुस्लिम एकता का नमूना दिख जाएगा। इस मिसाल को कायम करने वालों के मन में जात-पात और ऊंच-नीच का भेद नहीं दिखता। बस वह अपने हुनर को दिखाने में ही जुटे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं लालगोपालगंज की। शारदीय नवरात्र निकट है, ऐसे में मंदिरों में मां दुर्गा की आराधना भक्त करेंगे। मां को अर्पित की जाने वाली चुनरी की खूब मांग रहती है। चुनरी को बनाने में यहां का मुस्लिम परिवार के लोग जुटे हैं।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चैत्र नवरात्र में मठ और मंदिर समेत सभी धर्म स्थलों में ताला जड़ दिया गया था। पूजा और इबादत किए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके चलते लालगोपालगंज का चुनरी उद्योग ठप पड़ गया था। वहीं शारदीय नवरात्र पर उपासना किए जाने की छूट मिलने से भक्त उत्साहित तो हैं ही, वहीं कारीगर भी दिन रात एक कर चुनरी तैयार करने में जुट गए हैं।
लालगोपालगंज के इन इलाकों में होता है चुनरी बनाने का पुश्तैनी धंधा
लालगोपालगंज कस्बा के खानजहानपुर, अहलादगंज और इब्राहिमपुर मोहल्ला में दर्जनों मुस्लिम परिवार चुनरी बनाने का पुश्तैनी काम पूर्वजों से करते आ रहे हैं। छह माह पूर्व देश में कोरोना फैलने से मंदिर और धर्म स्थलों में अब पूजा की अनुमति मिलने से माता को चढ़ाई जाने वाली चुनरी की अचानक मांग बढ़ गई। विंध्याचल, कालका देवी, वैष्णो देवी, मुंबा देवी, केदारनाथ, विंध्यवासनी, नासिक, अजमेर, मैहर, हरिद्वार, जयपुर, उज्जैन, गोरखपुर आदि शहरों में चुनरी खरीद-फरोख्त का बाजार गर्म हो गया है।
काम में तेजी देख मुस्लिम महिलाएं भी कर रहीं कारीगरी
चुनरी का काम कुटीर उद्योग के तर्ज पर चलता है। चुनरी, कलावा, नारियल चुनरी और गोटा चुनरी बनाई जा रही है। कोरोना काल में आसपास के कई गांवों की महिलाओं को रोजगार मिलना बंद हो गया था। अब रावां, आधारगंज, उमरावगंज, रजागंज, इदिया का पुरवा, लाला का पूरा, बगवा समेत अन्य गांव की महिलाएं भी इस काम में हाथ बंटा रही हैं। कच्चे सूत से कलावा बनाने के साथ कच्चे सूती कपड़े को चुनरी की शक्ल देना उन्हीं के जिम्मे है।
पिछली सरकार में डीएम ने इमदाद का दिलाया था भरोसा
कस्बे में सैकड़ों साल से कुटीर उद्योग के तर्ज पर चुनरी गमछा कलावा के घर घर हो रही हस्तशिल्प कारीगरी की सूचना पाकर पिछली सरकार में जिलाधिकारी ने स्थानीय कस्बा में चौपाल लगाई थी। जिसमें चुनरी के कारीगरों को हस्तशिल्पी का दर्जा देने का यकीन दिलाया था। व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकारी मदद दिए जाने का भी भरोसा दिलाया था, लेकिन सरकार जाने के साथ ही कारीगरों से किया गया वादा भी एक सपना बनकर रह गया।
बोले, चुनरी व्यवसाय से जुड़े कारोबारी
व्यापारी नफीस अहमद ने बताया कि पिछले नवरात्र पर व्यापारियों को माल पहुंचा दिया गया था। परंतु पेमेंट ना मिलने से पिछले छह महीने तक काफी कठिनाई उठानी पड़ी, लेकिन शारदीय नवरात्र पर काम तेजी पकडऩे से काफी कुछ बेहतर हो गया है। वहीं मोहम्मद ताहिर बताते हैं कि चुनरी और कलावा रंगने के लिए महाराष्ट्र के भिवंडी, मालेगांव शहर से कच्चा धागा व सूती कपड़ा मंगवाया जाता है। जिसकी पहले धुलाई की जाती है। फिर उसपर रंग चढ़ाया जाता है। रंगाई का पुश्तैनी काम हमारे पूर्वजों से चला रहा है। मकबूल अहमद का कहना है कि लॉकडाउन में संधि उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
नकदी न मिलने से कारोबार प्रभावित
थोक व्यापारियों को माल पहुंचाए जाने के बाद भी नकदी न मिलने से कारोबार प्रभावित हुआ है। पिछले सप्ताह से चुुनरी के काम में तेजी आने से व्यापारियोंं से लेन देन शुरू हो गया है। शकील अहमद बताते हैं कि शारदीय नवरात्र पर काम शुरू होने से कस्बा के हस्तशिल्पियों को रोजगार मिल गया है। कुटीर उद्योग के तौर पर चल रहे चुनरी उद्योग से जुड़ी महिलाएं भी इस समय रोजगार से जुड़ गई हैं। जिससेे लोगों को काफी राहत मिली है।