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Shilp Mela: लोकनृत्यों की प्रस्तुति से और चटख हुई प्रयागराज में शिल्प मेले की बहुरंगी छटा

एनसीजेडसीसी में राष्ट्रीय शिल्प मेला अपनी बहुरंगी छटा के बीच अब पूरी तरह निखर उठा है। विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दर्शकों की खूब वाहवाही पाई तो गर्म कपड़े सजावटी सामान आर्टीफीशियल ज्वेलरी क्राकरी दरी के स्टाल पर लोग जा रहे हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 09 Dec 2021 09:38 AM (IST)Updated: Thu, 09 Dec 2021 09:39 AM (IST)
Shilp Mela: लोकनृत्यों की प्रस्तुति से और चटख हुई प्रयागराज में शिल्प मेले की बहुरंगी छटा
हिमांचल, गुजरात, पंजाब, झारखंड और उप्र के कलाकारों ने मन मोहा

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी) में लगा राष्ट्रीय शिल्प मेला अपनी बहुरंगी छटा के बीच अब पूरी तरह निखर उठा है। विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने बुधवार शाम दर्शकों की खूब वाहवाही पाई तो गर्म कपड़े, सजावटी सामान, आर्टीफीशियल ज्वेलरी, क्राकरी, दरी व जूट के उत्पाद लेकर आए शिल्पकारों के स्टाल पर लोगों का रेला उमड़ रहा है। सहारनपुर के मशहूर फर्नीचर, बनारसी व चंदेरी साड़ियां, जयपुरी रजाइयों और कश्मीर की पश्मीना शाल लोग खूब पसंद कर रहे हैं।

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लोकनृत्यों की शैली देख हुए रोमांचित

शाम को करीब साढ़े पांच बजे शुरू हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रयागराज के सूफी गायक जलज कबीर ने खुसरो के गीत ‘सईयां के रंग हजार’’ की प्रस्तुति से लोगों का मन मोह लिया। इसके बाद वाराणसी से आईं युवा कथक नृत्यांगना शिवानी मिश्रा और उनके समूह ने तबले की थाप के साथ थिरक कर दर्शकों की सराहना पाई। झारखंड से आए कलाकारों ने खरसवां छऊ नृत्य की प्रस्तुति की। भावनगर गुजराज से आए नितिन दबे और साथी कलाकारों ने गरबा नृत्य व डांडिया नृत्य प्रस्तुत किया। हिमांचल प्रदेश से आए राजकुमार और साथी कलाकारों ने सांगला नृत्य प्रस्तुत किया। पंजाब में विवाह के अवसर पर बरातियों का स्वागत करने के लिए प्रचलित जिन्दुआं नृत्य की प्रस्तुति रवि कन्नूर और साथी कलाकारों ने की। मीरजापुर से जटाशंकर के दल ने चौलर नृत्य की प्रस्तुति कर दर्शकों का मनाेरंजन किया। वैशाखी के अवसर पर होने वाले भांगड़ा नृत्य को अपने पारंपरिक परिधानों में सुसज्जित होकर पंजाब के पटियाला से आए कलाकरों ने प्रस्तुत किया। पश्चिम बंगाल से आए परमानंद और उनके कलाकारों ने छऊ नृत्य के माध्यम से माता रानी के महिषासुर मर्दिनी प्रसंग को जीवंत किया।


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