Lockdown 5.0 : गांवों में स्वरोजगार की मुहिम, प्रवासी कामगार कर रहे मशरूम की खेती Prayagraj News
लॉकडाउन में पेट भरने के लिए कुछ करना भी था। इसी उधेड़बुन के बीच घर लौटे प्रवासी कामगारों को भी मशरूम की खेती की राह नजर आई तो उसी तरफ चलने लगे।
प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस के कारण कई चरणों में लॉकडाउन लगाया गया। ऐसा इसलिए कि कोरोना का संक्रमण बढऩे से रोका जा सके। ऐसे में दूर-दूर से प्रवासी कामगार भी अपने घरों की ओर लौट आए हैं। लॉकडाउन में किसी तरह प्रवासी अपने गांव लौटे तो उनके हाथ खाली थे। न खेत न बाग और रोजी-रोटी का बड़ा संकट भी। वहीं अब उन्हें इसकी चिंता नहीं है।
प्रवासी कामगार से मशरूम मैन बन गए
लॉकडाउन में पुलिस-प्रशासन की सख्ती के कारण घर से निकल नहीं सकते थे और पेट भरने के लिए कुछ करना भी था। इसी उधेड़बुन के बीच राह नजर आई तो चल पड़े उसी पर। यह राह थी घर में मशरूम की खेती की। 24 दिनों में प्रवासी कामगार से मशरूम मैन बन गए। फूलपुर के कोड़ापुर के रमेश कुमार और देवेंद्र गाजियाबाद की गत्ता फैक्ट्री में काम करते थे। दोनों 30 मार्च को किसी तरह घर पहुंचे। मिश्रापुर के विपिन मिश्र मुंबई की केमिकल कंपनी में नौकरी थी तो ढेलहा के लवकुश सूरत में सिक्योरिटी गार्ड थे। विपिन चार को तो लवकुश छह अप्रैल को घर आए। ट्रक से छह और आठ दिन में पहुंचे थे। चूंकि कोरोना संक्रमित शहरों से आए थे तो कुछ दिन बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची थी लेकिन तब इन लोगों का क्वारंटाइन पीरियड पूरा हो चुका था।
मशरूम की खेती घर के अंदर हो सकती है
रमेश और देवेंद्र की मानें तो 16 अप्रैल को उन्हेंं पता चला कि मशरूम की खेती घर के अंदर हो सकती है। जानकारी ली और अधिकारी के मोबाइल नंबर का भी जुगाड़ किया। अगले दिन राष्ट्रीय आजीविका मिशन के जिला मिशन प्रबंधक डॉ. बलवंत से बात की। उन्होंने पहले से मशरूम की खेती कर रहे कौशलेंद्र के जरिए स्पॉन (बीज) भेजा। फिर क्या था, रमेश, देवेंद्र ही नहीं, बल्कि विपिन व लवकुश समेत काफी संख्या में प्रवासी कामगार जुट गए मशरूम की खेती में।
देखभाल है बेहद आसान
मशरूम उत्पादन के लिए प्लास्टिक के बैग में ट्रीट किया हुआ भूसा भरा जाता है, जिसमें बीज डाला जाता है। फिर इस बैग लटका दिया जाता है। एक कमरे में 50-60 बैग रखे जा सकते हैैं। इसे चूहों से बचाना होता है और सुबह-शाम बैग को घुमाना होता है। मशरूम उग आने पर कैंची से काटा जाता है। इसके लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग दी
इस तरह किया विक्रय
पहली बार बिक्री का संकट था, लॉकडाउन में होटल, रेस्तरां बंद। लोगों ने फूलपुर, हंडिया, प्रतापपुर, सैदाबाद, बलीपुर, सहसों आदि कस्बों की सब्जी बाजारों में इसे सप्लाई किया। अगले 10 दिन में फिर उत्पादन हुआ तो इसी तरह बाजार भेजा। तीसरी बार उत्पादन होने पर शहर भेजा। सोरहा, गड़ौर, मुबारकपुर, पाशी, ढेलहा, मिश्रापुर, कोड़ापुर गांवों में मशरूम उत्पादन करने वाले प्रवासी कामगारों की संख्या अब 400 से ज्यादा हो चुकी है।
50 बैग से 62 हजार की कमाई
एक बैग से एक बार में तीन किलो से ज्यादा मशरूम होता है। लॉकडाउन में 125 रुपये प्रति किलो बिका। एक बैग से तीन बार उत्पादन होता है। पहली बार 23-24 दिन में फिर दो बार 10-10 दिन में तोड़ाई होती है। इस प्रकार से एक बैग से लगभग 10 किलो मशरूम का उत्पादन होता है। 10 किलो के हिसाब से 1250 रुपये का मशरूम एक बैग से बिकता है। इसी तरह 50 बैग से लगभग 62,500 रुपये के करीब की बिक्री होती है। मिशन प्रबंधक डॉ.बलवंत के मुताबिक एक बैग में 110 रुपये लागत आती है। इस तरह 50 बैग में 5500 रुपये लागत आती है।
बोले, राष्ट्रीय आजीविका मिशन के उपायुक्त
राष्ट्रीय आजीविका मिशन प्रयागराज के उपायुक्त अजित कुमार कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों ने फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घर मेें मशरूम की खेती की, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ। अब तक 400 से ज्यादा प्रवासी कामगार इसकी खेती करने लगे हैैं। करीब 600 प्रवासी कामगारों को दूरभाष और ट्रेनर के जरिए ट्रेनिंग दी गई है।