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लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराकर लोगों में इंसानियत का भाव जगा रहे Pratapgarh के मंगलाचरण

मंगलाचरण मिश्र आज तक लगभग 23 सौ हिंदू और तकरीबन साढ़े चार सौ मुस्लिमों के शव का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। वह बताते हैं कि हिंदू के शव का अंतिम संस्कार कराने में करीब तीन हजार और मुसलमान के शव को दफनाने में 28 रुपये का खर्च आता है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2021 09:00 AM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 11:53 AM (IST)
लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराकर  लोगों में इंसानियत का भाव जगा रहे Pratapgarh के मंगलाचरण
वह लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करा कर लोगों को इंसानियत सीखा रहे हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। आज के समय में जब संवेदनाएं खत्म होती जा रही हैं। लोग अपने मां-बाप की सेवा तक से विमुख होते जा रहे हैं। ऐसे में कोई नि:स्वार्थ भाव से गैरों की सहायता को आगे आए तो उसे मानवता नहीं, ईश सेवा ही कहेंगे। प्रयागराज के पड़ोसी जिले प्रतापगढ़ के निवासी मंगलाचरण मिश्र का सेवा भाव तो निराला है। वह लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करा कर लोगों को इंसानियत सीखा रहे हैं।

पिछले 11 सालों से कर रहे यह काम, मिलता है असीम सुख
प्रतापगढ़ जिले के कटरा मेदिनीगंज के जलालपुर गांव निवासी मंगलाचरण मिश्र का कहना है कि सन् 2009 यानी पिछले 11 सालों से वे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करा रहे हैं। इस कार्य में उन्हें आत्मिक सुख मिलने के साथ ही शांति का अनुभव होता है इसलिए कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक ईश्वर की कृपा रहेगी मानवता की सेवा का उनका यह काम जारी रहेगा।

गिद्ध, कौवों को मानव शव नोचते देखकर जागा था भाव
मंगलाचरण बताते हैं कि वर्ष 2009 में एक बार वे पिता के साथ चिलबिला की ओर जा रहे थे। तभी सई नदी पुल के नीचे कुछ गिद्ध व कौवे मानव शव को नोचते दिखाई दिए तो उनको घोर कष्ट हुआ। इसकी चर्चा उन्होंने पिता से की। कहा कि बताइये आज आदमी की क्या हालत है। लोगों की संवेदनाएं मर सी गई हैं। किसी ने इस मानव शव को लाकर फेंक दिया होगा तभी तो वह दुर्दशा को प्राप्त हो रहा है। तो पिता जी ने करमगति कहकर बात टालने की पूरी कोशिश की किंतु मेरा मन व्यथित था। मुझे दुखी देखकर उन्होंने कहा कि तुम ही क्यों न ऐसे शवों का संस्कार करा देते हो और फिर पिता की प्रेरणा से मैनें यह कार्य आरंभ कर दिया।  

पिंडदान कराने के साथ आयोजित कराते हैं भोज-भंडारा
शवों का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार कराने की पूरी कोशिश रहती है। हिंदू का शव हुआ तो जलाया जाता है यदि मुस्लिम का हुआ तो उसे दफन करवाते हैं। मंगलाचरण बताते हैं कि वर्ष में एक बार चैत्र मास में पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर वारुणी घाट पर सबका पिंडदान और भोज भी कराते हैं यह सारा कार्यक्रम बनारस में होता है।

आज तक करीब 2350 शवों का करा चुके हैं अंतिम संस्कार
मंगलाचरण मिश्र आज तक लगभग 23 सौ हिंदू और तकरीबन साढ़े चार सौ मुस्लिमों के शव का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। वह बताते हैं कि हिंदू के शव का अंतिम संस्कार कराने में करीब तीन हजार और मुसलमान के शव को दफनाने में 28 रुपये का खर्च आता है। जिसका वहन वे अपने निजी संसाधनों से करते चले आ रहे हैं। मंगलाचरण का कहना है कि किसी भी नेक काम में समस्याएं तो आती रहती हैं, मुझे भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन मैं पीछे नहीं हटा और मानवता की सेवा का यह कार्य जारी है व जब तक ईश्वर इच्छा होगी जारी रहेगा।

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