पीसीएस-प्री रिजल्ट में मनमानी का विवाद खत्म किए बिना जारी मेंस का परीक्षा परिणाम
पीसीएस मेंस 2016 का परिणाम तो यूपीपीएससी ने जारी कर दिया है लेकिन, रिजल्ट में मनमानी और प्रश्नों के विवाद अभी कायम हैं।
प्रयागराज (जेएनएन)। पीसीएस मेंस 2016 का परिणाम तो यूपीपीएससी ने जारी कर दिया है लेकिन, रिजल्ट में मनमानी और प्रश्नों के विवाद अभी कायम हैं। ऊपर से एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों को इसमें भी गलत तरीके से शामिल करने के गंभीर आरोप का अब तक न तो समाधान हुआ है न ही शिकायती पत्रों के आधार पर सीबीआइ ने जांच पूरी की है। इसके अलावा मुख्य परीक्षा की कापियों का मूल्यांकन और क्रॉस चेक भी ऐसे विशेषज्ञों से कराया गया है जिनकी योग्यता पर कई बार सवाल उठे हैं।
प्रश्नों को लेकर सवाल उठे थे
यूपीपीएससी ने पीसीएस 2016 की प्रारंभिक परीक्षा 20 मार्च, 2016 को कराई थी उसके बाद ही तमाम अभ्यर्थियों ने प्रश्नों को लेकर सवाल उठाए। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की ओर से नौ प्रश्नों के गलत होने का दावा इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका के माध्यम से किया गया। हाईकोर्ट ने मुख्य परीक्षा के बाद नौ दिसंबर 2016 को प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए चार प्रश्नों को गलत मानते हुए इसे रद करने और एक प्रश्न के उत्तर के दो विकल्प को सही मानते हुए प्रारंभिक परीक्षा का संशोधित परिणाम जारी करने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ यूपीपीएससी ने शीर्ष कोर्ट में एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दाखिल की। इस पर शीर्ष कोर्ट ने परिणाम संशोधन के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से हुए आदेश पर रोक लगा दी।
प्रकरण अभी अनुत्तरित
शीर्ष कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद यूपीपीएससी ने अप्रैल 2017 में कापियों का मूल्यांकन शुरू कराया। वहीं, कई अभ्यर्थियों ने भर्तियों की जांच कर रहे सीबीआइ अफसरों को शिकायती पत्र दिया है कि मुख्य परीक्षा में एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों को गलत तरीके से शामिल किया गया है। यह प्रकरण अभी अनुत्तरित ही है। मेंस के परिणाम में लेटलतीफी होने के पीछे अभ्यर्थियों का यह भी आरोप रहा है कि कापियों का मूल्यांकन जिन विशेषज्ञों से कराया जा रहा है उनकी योग्यता खुद ही सवालों के घेरे में है। मीडिया प्रभारी प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति अवनीश पांडेय ने बताया कि यूपीपीएससी को चाहिए कि पहले कोर्ट में चल रहे मुकदमे का निस्तारण कराए। उसके बाद ही अंतिम परिणाम घोषित करे, क्योंकि शीर्ष कोर्ट यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहरा देता है तो उन अभ्यर्थियों के साथ बहुत अन्याय होगा जो मुख्य परीक्षा में सफल हुए हैं।