आनंद गिरि के निष्कासन पर बोले महंत नरेंद्र गिरि, तीन साल तपस्या करें तो फिर करुंगा पंचों से विनती
महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि आनंद गिरि की महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गई थी कि वो मुझे कुछ समझते ही नहीं थे। हर जगह खुद को मुझसे श्रेष्ठ दिखाने लगे थे। हरिद्वार कुंभ के दौरान मेरे खिलाफ ही साजिश रचने लगे। इस पर महात्माओं ने उन्हें बहुत फटकारा था।
प्रयागराज, जेएनएन। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने अपने शिष्ठ योग गुरू आनंद गिरि के समस्त आरोपों को निराधार बताया है। कहा कि मठ व निरंजनी अखाड़े की एक इंच भी जमीन कहीं नहीं बेची गई। बल्कि आनंद ने ही व्यक्तिगत संपत्ति बनाने के लिए अखाड़े की जमीन का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया था। निरंजनी अखाड़ा ने उन्हें नोएडा आश्रम का प्रभारी बनाया तो वहां की संपत्ति बेचने का प्रयास करने लगे। उस पैसे से खुद के लिए व्यक्तिगत संपत्ति बनाने लगे जबकि संतों की कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होती। कहा कि आनंद गिरि केदारनाथ जाकर तीन साल तपस्या करके अपनी गलती का प्रायश्चित करें। वहां से लौटकर आएंगे तो वे अखाड़े के पंचों से विनती करके वापस कराने का प्रयास करेंगे।
परवरिश में कमी नहीं, दी हर सुख सुविधा
व्यथित मन से महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि उन्होंने शिष्य के रूप में आनंद गिरि की परवरिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। उन्हें हर सुख व सुविधा दिया। मठ-मंदिर में उनका अधिकार निरंतर बढ़ाया। वो बेहतर संन्यासी बनें उसके लिए निरंतर प्रयास किया। खुद से ज्यादा उनके उपर विश्वास किया। लेकिन, उन्होंने विश्वासघात करके गुरु-शिष्य परंपरा को कलंकित कर दिया। खुद की महत्वकांक्षा इतनी बढ़ा लिया कि गुरु का अपमान करने से भी पीछे नहीं रहे।
गलतियों को किया अनदेखा
महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि आनंद गिरि की हर गलती को अनदेखा करके उन्होंने सुधरने का मौका दिया। विदेश में यौन शोषण का आरोप लगा तब भी उनके साथ खड़े रहे। उनके अलग संस्था बनाने, अलग शिविर लगाने, विभिन्न वर्ग के लोगों में खुद को श्रेष्ठ साबित करने के बावजूद कभी कुछ नहीं कहा। उन्हें तमाम शिकायतें मिलती रहीं। हर बार उन्हें समझाकर धर्म के रास्ते पर चलने को प्रेरित किया। परंतु उन्होंने खुद के आचरण में बदलाव नहीं किया।
कोरोना होने पर छोड़ा साथ
महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि शिष्य के लिए गुरु की सबकुछ होते हैं। गुरु का साथ वो कभी नहीं छोड़ता। लेकिन, हरिद्वार कुंभ में मुझे कोरोना हुआ तो आनंद गिरि ने कोई सेवा नहीं की। सिर्फ एक बार दूर से देखकर लौट गए थे। मैं जीवित हूं या नहीं, कभी उसका भी पता नहीं लिया। इससे मुझे बहुत पीड़ा हुई।
हरिद्वार में मेरे खिलाफ रची साजिश
महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि आनंद गिरि की महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गई थी कि वो मुझे कुछ समझते ही नहीं थे। हर जगह खुद को मुझसे श्रेष्ठ दिखाने लगे थे। हरिद्वार कुंभ के दौरान मेरे खिलाफ ही साजिश रचने लगे। इस पर महात्माओं ने उन्हें बहुत फटकारा था।