पुण्यतिथि पर याद किए गए महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला Prayagraj News
निराला जैसे संस्कृति पोषक महाकवि कभी-कभी पैदा होते हैं। प्रयाग नगरी को यह गौरव प्राप्त है कि उसे महाकवि-महाप्राण निराला की कर्म साधना भूमि का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ।
प्रयागराज,जेएनएन : निराला जैसे संस्कृति पोषक महाकवि कभी-कभी पैदा होते हैं। प्रयाग नगरी को यह गौरव प्राप्त है कि उसे महाकवि-महाप्राण निराला की कर्म साधना भूमि का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निरालाÓ की 57वीं पुण्यतिथि पर ये बातें मंगलवार को दारागंज में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य और जाने माने हिंदी आलोचक व समीक्षक डॉ अजय तिवारी ने कहीं। श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन पं. देवीदत्त शुक्ल-पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान ने किया।
कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने निराला जी की स्मृति संस्मरणों को सुनते-सुनाते उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर महाकवि को नमन किया। मुख्य अतिथि डॉ. अजय तिवारी ने 'निरालाÓ के प्रति हिंदी साहित्य, शिक्षा और कविता जगत में कम होते रुझान पर अपनी व्यथा जाहिर की। कहा कि प्रयागराज शहर और निराला जी के अपने मोहल्ले में ही लगी प्रतिमा की दुर्दशा पीड़ादायक है। संस्कृति साहित्य के समर्पित संस्कार से ही वास्तविक प्रगति और विकास का ध्येय प्राप्त किया जा सकता है।
राज्य महिला आयोग की सदस्य अनामिका चौधरी ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों का स्वागत करते हुए आश्वासन दिया कि प्रतिमा स्थल का सौंदर्यीकरण कराने का प्रयास करेंगी। समाजसेवी मधु चकहा, एलएन यादव, किरन शर्मा ने प्रतिमा को उचित स्थान पर स्थापित कर उसे भव्य स्वरूप दिलाने की मांग की। पं. देवीदत्त शुक्ल-पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा ने निराला जैसी युगीन प्रतिभा को हिंदी जगत के साथ प्रयागराज का भी गौरव बताया। उन्होंने निराला और साहित्य, समाज व संस्कृति के प्रति हर नागरिक में गौरव बोध होने की आवश्यकता पर बल दिया। निराला जी के पौत्र डॉ. अमरेश त्रिपाठी ने सभी का आभार जताया।
इस अवसर पर कवि और लेखक नागेश्वर तिवारी, गायत्री दत्त पांडेय, शैलराज सोनकर, के सुनील कुमार निषाद, विवेक निराला, बजरंगबली गिरि, अनिल कनौजिया तथा रतन खरे आदि हिंदी अनुरागी शामिल रहे।
अपने ही शहर में बेगाने हुए निराला:
एक भी हाथ संभाला न गया, और कमजोरों का बस क्या है-कहा निर्दय, कहां है तेरी दया, मुझे दुख देने में जस क्या है। दारागंज में रहकर प्रयागराज को अपनी कर्म साधना भूमि बनाने वाले महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निरालाÓ की कलम से निकली यह पंक्तियां खुद उन पर ही जैसे जड़ गईं। निराला जी आज अपने ही शहर में बेगाने हो गए। हिंदी और शिक्षा जगत की बड़ी संस्थाओं की ओर से उनकी पुण्यतिथि पर किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया।
हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए प्रयागराज में दो बड़ी संस्थाएं हिंदुस्तानी एकेडेमी और ङ्क्षहदी साहित्य सम्मेलन हैं। इन दोनों ही संस्थाओं में मंगलवार को निराला जी याद नहीं किए जा सके। हिंदुस्तानी एकेडेमी में कोषाध्यक्ष पद पर रविनंदन सिंह के वीआरएस लेने और सचिव पद पर रविंद्र कुमार का अतिरिक्त प्रभार 14 सितंबर 2019 को खत्म होने के बाद से अब तक किसी अन्य की तैनाती नहीं हो सकी। यह दोनों पद रिक्त होने से यहां ऐसे कोई भी आयोजन नहीं हो रहे हैं। 'निरालाÓ की पुण्यतिथि पर भी एकेडेमी सूनी रही। इस मामले में अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह का फोन रिसीव न होने से उनका पक्ष नहीं मिल सका। वहीं हिंदी साहित्य सम्मेलन में कोई कार्यक्रम आयोजित न होने के सवाल पर वहां के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र का कहना है कि उनके यहां केवल निराला की जन्मतिथि पर कार्यक्रम आयोजित होता है। पुण्यतिथि नहीं मनाई गई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ओर से भी सूर्यकांत त्रिपाठी 'निरालाÓ याद नहीं किए गए। जबकि विश्वविद्यालय परिसर में निराला की प्रतिमा भी लगी है। विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र परिषद चुनाव के विरोध को संभालने में ही जुटा रहा और महाकवि निराला बिसार दिए गए।