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हमने देखे गजब नजारे मेले मे..

ताराचंद्र गुप्ता, इलाहाबाद : हमने देखे गजब नजारे मेले मे, लाए थे वो चांद सितारे ठेले मे।

By Edited By: Published: Tue, 16 Jan 2018 07:51 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 05:20 PM (IST)
हमने देखे गजब नजारे मेले मे..
हमने देखे गजब नजारे मेले मे..

ताराचंद्र गुप्ता, इलाहाबाद : हमने देखे गजब नजारे मेले मे, लाए थे वो चांद सितारे ठेले मे। भूखे बेच रहे थे दाना, प्यासे बेच रहे थे पानी। सूनी आंखे हरी चूडि़यां, सपने बेच रहे थे ज्ञानी। जी हां। कवि देवेद्र पांडेय की यह पंक्तियां माघ मेले मे पर पूरी तरह फिट तो नही बैठती, लेकिन उसका अंश जरूर देखने को मिलता है।

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आस्था से भरे माघ मेले का मनमोहक वातावरण। माथे पर चंदन का तिलक लगाए करीब नौ साल का गोलू पिता की अंगुली पकड़कर मेले से लौट रहा था। बांध के नीचे उतरते ही उसकी नजर एक ठेले नुमा दुकान पर पड़ी तो बोल उठा..पापा पिपिहरी। बिंदकी निवासी सरकारी नौकरी वाले पिता का बेटा गोलू कानवेट स्कूल मे तो पढ़ता है, लेकिन गांव के बच्चे बांसुरी को पिपहरी भी बोलते है। तो उसने भी जिद कर ली कि पिछली बार नही दिलाए, इस बार ले लीजिए सिर्फ एक। शायद उसके लिए पिपहरी चांद सितारे ही थे, जो ठेले पर सजे थे। मेले की कुछ दुकानो पर मौजूद छोटे-छोटे बच्चे कुछ न कुछ बेचते नजर आए। महिलाएं मां-बहनो के लिए सिंदूर, टिकुली और चूडि़यां बेच रही थी, लेकिन सभी के चेहरे खिले नही थे। श्रद्धालुओ को धर्म-अध्यात्म का हवाला देने वाले कई शख्स तरह-तरह की किताब बेचते वक्त ऐसा बोल रहे थे, जिसे सुनकर स्नानार्थी ज्ञानी मानकर सपनो को साकार करने वाली किताब खरीद लेते।

मौनी अमावस्या पर संगम स्नान की चाहत लिए कुछ श्रद्धालु नंगे पैर ही संगम की रेती पर चले जा रहे थे। रविवार की रात करीब तीन बज चुके थे। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं, युवतियां हर किसी के मन मे मां गंगा के आशीर्वाद की आकांक्षा नजर आ रही थी। सभी अमृत की तलब लिए आस्था की हिलोर से ओत-प्रोत थे। संगम मे डुबकी लगाते वक्त भगवान भास्कर का उदय नही हुआ था, तो चंद्रमा को ही सूर्य मानकर अ‌र्ध्य दे दिया। मौन की डुबकी के साथ किसी ने अच्छी नौकरी तो किसी ने परीक्षा मे पास होने और किसी ने परेशानी दूर करने की मन्नते मांगी। मौन की डुबकी, मन की मन्नत और निश्छल मन की प्रार्थना पर मां गंगा ने भी अपने आंचल खोल दिए तो उन्हे आभास हुआ कि डुबकी के साथ ही ठंड दूर जाती। संगम के पावन तट पर राजा, रंक और फकीर जैसे सभी तरह के लोग एक साथ संगम मे डुबकी लगा रहे थे। उनके लिबास से फर्क मालूम पड़ रहा था, लेकिन मां गंगा की गोद मे सभी एक जैसे थे। कोई गिनती गिनकर डुबकी लगा रहा था तो कोई अनगिनत लेकिन जब बाहर निकलते तो बस यही बोलते.. गंगा मइया की जै।


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