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माघ मेला में संगम तीरे युवा संत कर रहे गुरु सेवा और सीख रहे प्रबंधन का गुर

माघ मेला में गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्र झलक दिखती है। गुरु के प्रति शिष्य का समर्पित भाव व कर्तव्यनिष्ठा दिखती है। इसके साथ स्वयं का हुनर विकसित कर रहे हैं। गुरु की सेवा के साथ शिविर की व्यवस्था का प्रबंधन करके व्यक्तित्व विकास करते हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 07:20 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 07:20 AM (IST)
माघ मेला में संगम तीरे युवा संत कर रहे गुरु सेवा और सीख रहे प्रबंधन का गुर
गुरु सेवा और भजन-पूजन के साथ प्रबंधन का गुर सीख रहे हैं युवा संत

शरद द्विवेदी, प्रयागराज। मंत्रोच्चार के बीच यज्ञकुंड में पड़ती आहुतियां। भजन-कीर्तन की गूंज और तप में लीन महात्मा। माघ मेला क्षेत्र में ऐसा दृश्य चहुंओर दिखता है। उसी पवित्र धरा पर युवा संत खुद को सेवा रूपी बेदी पर तपा रहे हैं। गुरु सेवा, भजन-पूजन के साथ प्रबंधन का गुर सीख रहे हैं। मेला क्षेत्र में लगभग पांच हजार संतों के शिविर लगे हैं। इसमें 70 प्रतिशत शिविर का संचालन संतों के शिष्य कर रहे हैं। अधिकतर शिष्यों की आयु 17 से 25 वर्ष के बीच है। वो गुरु के पूजन, नाश्ता, भोजन, भंडारा का प्रबंधन करते हैं। इसके साथ प्रवचन, योग व ध्यान की कक्षा चलाकर मन का झिझक दूर कर रहे हैं।

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शिष्यों के भरोसे चलता है संतों का शिविर

माघ मेला में गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्र झलक दिखती है। गुरु के प्रति शिष्य का समर्पित भाव व कर्तव्यनिष्ठा दिखती है। इसके साथ स्वयं का हुनर विकसित कर रहे हैं। गुरु की सेवा के साथ शिविर की व्यवस्था का प्रबंधन करके व्यक्तित्व विकास करते हैं। मेला के बाद प्रवचन व कीर्तन करके हजारों-लाखों रुपये कमाते हैं। नागेश्वर धाम शिविर का संचालन करने वाले आचार्य धनंजय का निर्देश सर्वोपरि होता है। भंडारा संचालन के साथ शिविर की समस्त व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ज्योतिष गणना व कल्पवासियों को प्रवचन सुनाते हैं। बताते हैं कि मेला क्षेत्र में रहकर स्वयं की प्रतिभा निखारने का उचित अवसर है, जिसका पूरा लाभ उठाते हैं। आचार्य सत्यम श्रीरामचरितमानस का बखान करने का गुर सीख रहे हैं। कहते हैं कि मेला क्षेत्र कर्मकांड के साथ प्रबंधन का बड़ा केंद्र है। किताबी ज्ञान के बजाय हर काम प्रैक्टिकल करना पड़ता है। यही जीवन को नई दिशा देता है। आचार्य अनुज भी गुरु स्वामी ब्रह्माश्रम की सेवा में लीन हैं। गुरु की समस्त आवश्यता को प्राथमिकता से पूरी करते हैं। इसके साथ शिविर में आने वालों की देखरेख, भंडारा संचालन व प्रवचन का अभ्यास करते हैं। टीकरमाफी आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी के उत्तराधिकारी हर्षचैतन्य ब्रह्मचारी सुबह कल्पवासियों को योग व ध्यान सिखाते हैं। इसके बाद शिविर संचालन की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं। हर व्यवस्था की चिंता करते हैं।

व्यक्तित्व निखारने का केंद्र है मेला

स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि माघ मेला व्यक्तित्व निखारने का केंद्र है। इसी पवित्र धरा पर हमने भी गुरु की सेवा करके ज्ञानार्जन किया। उसी से पहचान मिली है। जगद्गुरु कौशलेंद्र प्रपन्नाचार्य बताते हैं कि प्रयाग की धरा इंसान का गुरु की सेवा करके स्वयं का कायाकल्प करने का सौभाग्य प्रदान करती है।


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