संगम तीरे काता जाता है सियासी सूत, धर्म के साथ सामाजिक और राजनीतिक चिंतन भी
मेलाधिकारी शेषमणि पांडेय के अनुसार इस बार 3200 संस्थाओं को जमीन व सुविधा मिली है। ये धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं होती हैं। राजनीतिक विचारधारा वाले भी इन्हीं संस्थाओं के साथ अपने आयोजनों को करते रहते हैं। दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु इनका हिस्सा भी बनते हैं।
अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। सरकार दिल्ली और लखनऊ में बैठती है, पर कपास रूपी वोटर देशभर से आता है। उसका सूत संगम तीरे काता जाता है। यहीं तय होता है कि देश में राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी। किन विचारों को लेकर आगे बढ़ना है। उनका बीजोरोपण कहां और कैसे करना है। सियासत का कोट जो सियासतदा पहनेंगे और जनता जनार्दन को दिखाएंगे उसका तानाबाना यहीं बुना जाता है। इसके लिए पूरे एक महीने शिविर चलता है। यह जरूर है कि वह सीधे तौर पर किसी दल विशेष के झंडा, बैनर व पोस्टर के साथ नहीं रहता बल्कि वैचारिक पंडाल लगता है। कुछ संगठन इसका स्वरूप धार्मिक रखते हैं तो कुछ शैक्षणिक और सामाजिक। कई पंडालों का स्वरूप सरोकारी होता है लेकिन कहीं न कहीं उनके पीछे राजनीतिक रंग भी बिखरा होता है।
मेला क्षेत्र में इस बार 3200 संस्थाओं का लग रहा है पंडाल
मेलाधिकारी शेषमणि पांडेय के अनुसार इस बार 3200 संस्थाओं को जमीन व सुविधा मिली है। ये धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं होती हैं। राजनीतिक विचारधारा वाले भी इन्हीं संस्थाओं के साथ अपने आयोजनों को करते रहते हैं। दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु इनका हिस्सा भी बनते हैं। कहीं प्रदर्शनी लगती है तो कहीं, संगोष्ठी व अन्य आयोजन होते हैं। कुछ संस्थाएं पत्रक आदि बांटकर वैचारिक प्रवाह बनाती हैं। कह सकते हैं कि देशभर से जुटने वाले आस्थावान लोग पुण्य की डुबकी लगाने के साथ मेला क्षेत्र का भ्रमण कर यहां लगे पंडालों में वैचारिक सरिता में भी गोते लगाते हैं। तीर्थ यात्रा अध्ययन परिषद के सचिव व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रो. डीपी दुबे के अनुसार वह 1994 से शिविर लगा रहे हैं। उनके पास विभिन्न विषयों के शोधार्थी आते हैं। यहीं से उन्हें तमाम सूत्र मिलते हैं। यह स्थान अध्ययन के साथ जनमत निर्माण का भी माध्यम बनता है। देश के गांव ही नहीं विदेशों तक संदेश प्रसारित होते हैं।
संघ विचार परिवार करता है मंथन
माघ मेले में हर साल संघ विचार परिवार का पंडाल लगता है। भाजपा यहीं से राष्ट्रवादी विचारधारा को आत्मसात करती है। प्रांत प्रचार प्रमुख डा. मुरारजी त्रिपाठी ने बताया कि इसके तहत विश्व हिंदू परिषद, विद्याभारती, गंगा समग्र जैसे आनुषंगिक संगठन उपस्थिति दर्ज कराते हैं। सालभर में होने वाले आयोजनाें की कार्ययोजना बनाने के साथ देशभर के कार्यक्रमों व सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर मंथन भी होता है। किस तरह लोगों को अपने विचारों के साथ जोड़ना और उनकी आशंकाओं का समाधान करना है यह भी तय होता है।
कांग्रेस सेवा दल भी डालता है डेरा
वरिष्ठ कांग्रेसी व पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी का कहना है कि कांग्रेस की विचारधारा का प्रतिनिधित्व सेवा दल करता है। मेला क्षेत्र में त्रिवेणी रोड पर हर साल पंडाल लगता है। यहां लोग आते हैं, पार्टी के इतिहास को जानने के साथ वर्तमान विचारधारा को भी समझते हैं। जनता की अपेक्षा और आकांक्षा के अनुरूप आगे की रणनीति बनाई जाती है। किन मुद्दों पर आगे बढ़ना है यह तस्वीर भी यहीं साफ होती है। कह सकते हैं कि वर्षभर कार्य करने की ऊर्जा यहां से मिलती है।
भारतीय किसान यूनियन की रहती है मजबूत उपस्थिति
भारतीय किसान यूनियन चाहे धनंजय गुट हो या टिकैत गुट हर साल अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। टिकैत गुट के प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते हैं कि उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत भी हर साल मेले में आते थे। अब वह भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां देशभर से किसान जुटते हैं। उनके हितों की बात होती है। किसानों को कैसे आगे बढ़ाया जाए इसका संदेश भी दिया जाता है। यह संगठन राजनीतिक नहीं है पर उनकी विचारधारा सो साम्यता रखने वाले दल को समर्थन भी दिया जाता है।
हर साल लगता है समाजवादी चिंतन शिविर
सपा के जिलाध्यक्ष योगेश यादव ने बताया कि पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. जनेश्वर मिश्र के समय से ही मेला क्षेत्र में हर साल समाजवादी चिंतन शिविर लगता आ रहा है। इसके प्रभारी अवधेश यादव रहते हैं। यहां कई गोष्ठियां होती हैं। भविष्य में होने वाले आयोजनों की कार्य योजना बनाई जाती है। गांव देहात से आने वाले लोगों को पार्टी की विचारधारा से भी अवगत कराया जाता है। उन्हें समाज में किस तरह की परेशानी हो रही है। उनका समाधान क्या हो सकता है, इस सभी बिंदुओं पर विचार होता है।
दलित चिंतन के भी लगते हैं पंडला
बसपा के जिला अध्यक्ष बाबूलाल भौरा ने बताया कि मेला क्षेत्र में यूं तो बसपा का कोई पंडाल नहीं लगता पर बसपा सुप्रीमो मायावती की जन्मतिथि पर आयोजन होते रहते हैं। अन्य दलित चिंतन संबंधी शिविर भी दूसरे संगठन लगाते हैं। साधु परंपार से जुड़े कबीर पंथी, निरंकारी समाज आदि के लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इसके अतिरिक्त स्वदेशी जागरण मंच, गायत्री परिवार सहित तमाम संप्रदाय आदि के भी पंडाल सजते हैं। जो विचारों और परंपराओं की ज्योति जलाते हैं।