माघ मेला में गंगा के बाद यमुना के बढ़ते जलस्तर से कल्पवासियों और साधु-संतों की बढ़ी परेशानी
गंगा के बढ़े जलस्तर से गंगदीप में शिविरों में पानी भर गया था। इसलिए गंगदीप से शिविरों को सेक्टर पांच में शिफ्ट कर दिया गया है। शिफ्ट किए गए शिविरों के चलते मेला अब ओल्ड जीटी से करीब एक किलोमीटर उत्तर तक पूरे सूरदास गांव के सामने तक फैल गया
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। माघ मेला क्षेत्र में साधु-संतों और कल्पवासियों की समस्या कम होने के बजाय और भी बढ़ती जा रही है। गंगा के बाद अब यमुना भी उफान पर आने लगी है। शनिवार को गंगा का जलस्तर चार घंटे में एक सेंटीमीटर बढ़ता रहा वहीं यमुना का जलस्तर आधा सेंटीमीटर बढ़ने की बाद कही जा रही है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों की मानें तो केन और बेतवा के साथ यमुना में ललितपुर से पानी बढ़ रहा है। कानपुर बैराज से लगातार 23 हजार क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा जा रहा है। दोनों नदियों का जलस्तर बढ़ने से मेला प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे हैं।
गंगा के बढ़ते जलस्तर से मेला क्षेत्र में इस समय संत-महात्माओं के साथ कल्पवासियों में अफरातफरी मची हुई है। जो संत व कल्पवासी अभी भी गंगा के किनारे पर शिविर लगाए हुए है वह दहशत में हैं। कटान रोकने के लिए सिंचाई विभाग की ओर से प्रयास किया जा रहा है। शनिवार को गंगा का जलस्तर लगभग 77.77 मीटर के पार रहा। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों का कहना है कि तीन चार दिनों तक जलस्तर और बढ़ सकता है।
ओल्ड जीटी से एक किलोमीटर उत्तर तक बस गया मेला
गंगा के बढ़े जलस्तर से गंगदीप में शिविरों में पानी भर गया था। इसलिए गंगदीप से शिविरों को सेक्टर पांच में शिफ्ट कर दिया गया है। शिफ्ट किए गए शिविरों के चलते मेला अब ओल्ड जीटी से करीब एक किलोमीटर उत्तर तक पूरे सूरदास गांव के सामने तक फैल गया है। नई जगह की बसावट ऊंचे पर है और साफ सुथरी है। उस क्षेत्र में बसाई गई संस्थाओं तक बिजली, सड़क और पानी का इंतजाम कर दिया गया है। संगमनोज से दूर होने के कारण कुछ संस्थाओं ने उधर जाने से इंकार किया। जबकि अधिकतर कल्पवासी जाकर बस गए और भक्ति भजन लीन हो गए हैं। उधर से मेला प्रशासन की ओर से घाट भी बना दिया गया है। गंगा में आई बाढ़ के चलते पहली बार मेला का क्षेत्र वहां तक फैला है। उधर कई किसान खेती भी करते हैं। लेकिन मेला का विस्तार होने पर उनको कुछ दिन के लिए खेती से रोक दिया गया है। वहीं कटान रोकने के लिए सिंचाई विभाग की ओर से बाढ़ रोकने के लिए टीम सक्रिय है। त्रिवेणी और काली पांटून पुल के बीच बाढ़ के पानी ज्यादा दबाव है। यहां पर बनाए गए बंधे के ऊपर से पानी बहने लगा तो वहां पर बालू भरी बोरियां डालकर उसे रोका गया।