Magh Mela: संगम की रेती पर आज एक महीने का कल्पवास शुरू, जानिए इसके 21 नियम
संगम तीरे माघ महीने में कल्पवास ज्यादा पुण्यकारी माना जाता है। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे। दिन में तीन बार गंगा स्नान एक समय भोजन व दिनभर धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन प्रवचन सुनने में समय व्यतीत करेंगे।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति। पूर्वजों की तृप्ति व मोक्ष की प्राप्ति की संकल्पना साकार करने के लिए संगम तीरे माहभर का अखंड तप कल्पवास मकर संक्रांति से आरंभ हो जाता है। वैसे शुक्रवार को भी मकर संक्रांति मनाई गई है, लेकिन सूर्य धनु से मकर राशि में 14 जनवरी की रात 8.49 बजे किए हैं। इसके चलते मकर संक्रांति का पुण्यकाल शनिवार को है। मेला क्षेत्र में पहुंच चुके संत व श्रद्धालु शनिवार को संगम अथवा गंगा में डुबकी लगाकर कल्पवास शुरू करेंगे। भजन, पूजन व अनुष्ठान का सिलसिला महाशिवरात्रि तक चलेगा।
संगम तट पर कल्पवास का दो कालखंड तय हैं। मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की संक्रांति तथा पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करने की परंपरा है। संगम तीरे माघ महीने में कल्पवास ज्यादा पुण्यकारी माना जाता है। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे। दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन व दिनभर धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, प्रवचन सुनने में समय व्यतीत करेंगे।
कल्पवास के 21 नियम
पराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय बताते हैं कि पद्मपुराण, अग्नि पुराण व स्कंद पुराण में कल्पवास की महिमा का बखान है। बताया गया है कि माघ मास में देवता स्वर्गलोक से प्रयागराज आते हैं। यही कारण है कि उसमें किए गए अनुष्ठान का फल जल्द प्राप्त होता है। साधक की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं, उनके कुल भी तर जाते हैं। कल्पवास के 21 नियम हैं। इसमें 1-झूठ न बोलना, 2-हर परिस्थिति में सत्य बोला, 3-घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त होना, 4-गंगा में सुबह, दोपहर व शाम को स्नान करना, 5-शिविर के बाहर तुलसी का बिरवा रोपना व जौ बोना, 6-तुलसी व जौ को प्रतिदिन जल अर्पित करना, 7-ब्रह्मचर्य का पालन करना, 8-खुद या पत्नी का बनाया सात्विक भोजन करना, 9-सत्संग में भाग लेना, 10-इंद्रियों में संयम, 11-पितरों का पिंडदान करना, 12-हिंसा से दूर रहना, 13-विलासिता से दूर रहना, 14-परनिंदा न करना, 15-जमीन पर सोना, 16-भोर में जगना, 17-किसी भी परिस्थिति में मेला क्षेत्र न छोडऩा, 18-धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों का पाठ करना, 19-आपस में धार्मिक चर्चा करना, 20-प्रतिदिन संतों को भोजन कराकर दक्षिणा देना, 21-गृहस्थ आश्रम में लौटने के बाद भी कल्पवास के नियम का पालन करना होता है। कल्पवास 12 वर्ष में पूर्ण होता है। कल्पवासी को लगातार 12 वर्ष संगम तट आना पड़ता है। बीच में कोई नहीं आता तब उसे नए सिरे से कल्पवास का संकल्प लेकर उसे पूर्ण करना पड़ता है।