माघ मेला 2002: सर्द मौसम और मुश्किलों के बीच प्रयागराज में संगम तट पर जप-तप में जुटे हैं कल्पवासी
लाखों कल्पवासी तमाम समस्याओं के बीच भी पूरे भक्तिभाव से भगवान की साधना में लीन है। मौसम की मार हो या गंगा का पानी बढ़ने से हो रही समस्याएं कुछ भी कल्पवासियों के आस्था को डिगाने में असमर्थ रही। आस्था का कुछ ऐसा ही नजारा रविवार को भी दिखा
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। संगम किनारे तंबुओं की नगरी में लाखों कल्पवासी तमाम समस्याओं के बीच भी पूरे भक्तिभाव से भगवान की साधना में लीन है। मौसम की मार हो या गंगा का पानी बढ़ने से हो रही समस्याएं कुछ भी कल्पवासियों के आस्था को डिगाने में असमर्थ रही। आस्था का कुछ ऐसा ही नजारा रविवार को भी कल्पवास क्षेत्र में देखने को मिला।
ठंड और सर्द हवाओं के बीच भागवत भक्ति
सुबह से ही तेज ठंडी हवाएं चल रहीं थी, आसमान में कहीं बादल थे तो कहीं से सूरज देवता झांक रहे थे। मौसम में ठंडक इतनी की लोग कपड़ों से लैस, लेकिन इन सब के बीच गंगा स्नान और उसके बाद भगवान का ध्यान। टेंट के आगे गमले में लगाई गई तुलसी के पौधे के आगे बैठे कल्पवासी मानों किसी परीक्षा में बैठे अभ्यर्थी हो। वह ईश्वर की आराधना में आस्था और विश्वास से लीन हैं।
जानिए क्या बोले कल्पवासी
पिछले 15 सालो से परिवार के साथ कल्पवास के लिए आ रहें है, समस्याओं का क्या है यह तो हर बार ही रहता है। यहां सुविधाओं के लिए नहीं भगवान के ध्यान के लिए आते हैं।
कांति देवी, सोरांव
कल्पवास का मतलब ससारिक माया को छोड़कर भगवना की साधना होता है। जब घर जैसी सुविधाएं जब कल्पवास में ही मिलने लगेंगी तो इसका मतलब ही क्या रह जाएगा।
मंजू शुक्ला, झलवा
इस बार भगवान कुछ ज्यादा ही परीक्षाएं ले रहा है। मौसम भी हर बार की तरह नहीं है। भगवान की भक्ति के लिए कोई मौसम नहीं होता है, बस आस्था होती है।
सुनीता मिश्रा, फूलपुर
जब हम कल्पवास को आए थे तो गंगद्वीप में जगह मिली थी। फिर गंगा जी बढ़ने लगी हमको शिफ्ट होना पड़ा, लेकिन इससे हमारी पूजा का क्या मतलब है।
रामा शुक्ला, फाफामऊ