इलाहाबाद संग्रहालय में करें गौरवपूर्ण अतीत का दीदार, क्रांतिकारियों की रखीं है अमूल्य वस्तुएं Prayagraj News
देश को आजादी मिलने के बाद 14 दिसंबर 1948 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की शहादत स्थल से चंद दूरी पर कंपनीबाग परिसर में मेरे (संग्रहालय) नए भवन की नींव रखी। बिल्डिंग तैयार होने के बाद 1953 में संग्रहालय नए भवन में आ गया।
प्रयागराज,जेएनएन। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परंपरा व वीरता का प्रतीक है इलाहाबाद संग्रहालय। संग्रहालय में रखी वस्तुएं अमूल्य हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए हमारे क्रांतिकारियों ने प्राणों की बाजी लगाई है। कोरोना संक्रमण की बंदिशों के बीच संग्रहालय दर्शकों के लिए खोल दिया गया है। मास्क लगाकर शारीरिक दूरी मानक का पालन करते हुए हर कोई संग्रहालय का दीदार कर सकता है।
संग्रहालय में महात्मा गांधी का अस्थि कलश जिस वाहन से संगम गया वह यहां मौजूद है। प्राचीनकाल के 30 हजार से अधिक स्वर्ण, रजत व कांस्य की मुद्राएं हैं। शुंगयुगीन भरहुत की कलाकृतियां, कौशांबी की बुद्ध प्रतिमा, गांधार कला में निर्मित बोधिसत्व मैत्रेय प्रतिमा, भूमरा के गुप्तयुगीन शिव मंदिर के अवशेष, खोह का एकमुखी शिवलिंग, जमसोत की प्रतिमाएं, रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक, जर्मन पेंटर अनागार्गिक, बंगाल के असित हालदार, जेमिनी राय, अवनींद्रनाथ टैगोर, वीएन राय के चित्र, चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल, गांधी, नेहरू सहित कई नेताओं के कपड़े व बर्तन यहां सुरक्षित हैं।
मशक्कत से बचाई गईं धरोहरें
देश जब अंग्रेजों का गुलाम था तब यहां की धरोहरों को खत्म करने की साजिश रची जा रही थी। अंग्रेजों के भय से उनका विरोध करने की हिम्मत हर कोई नहीं जुटा पाता था। इसका फायदा उठाकर वह भारत की धरोहरों को अपने देश ले जा रहे थे। धरोहरों में शामिल थी पुरातात्विक महत्व बताने वाली मूर्तियां, सिक्के, पेंटिंग। इसका एक कारण ऐसी धरोहरों को संजोने के लिए संग्रहालय का न होना भी शामिल था, जिसका फायदा अंग्रेज लंबे समय तक उठाते रहे। सामूहिक राय पर कंपनीबाग परिसर में 1863 में पब्लिक लाइब्रेरी व संग्रहालय का निर्माण भी शुरू हुआ। इसमें पब्लिक लाइब्रेरी तो बनी, परंतु बजट के अभाव में तीन साल बाद संग्रहालय का काम बंद हो गया। इससे धरोहरों के बाहर जाने का सिलसिला जारी रहा।
यह देखकर इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने बृजमोहन व्यास, महामना मदनमोहन मालवीय, आरसी टंडन के साथ मंत्रणा करके प्राचीन धरोहरों को बचाने का निर्णय लिया। इनके प्रयास से 28 फरवरी 1931 में महानगर पालिका (वर्तमान में नगर निगम) के एक कमरे को संग्रहालय के रूप में विकसित किया। जहां गिनी-चुनी मूर्तियां रखकर सरकार को यह संदेश दिया गया कि भारत की धरोहर यहीं रहेंगी। वहां कौशांबी, जमसोद, खजुराहो की मूर्तियां रखकर अंग्रेज सरकार को संदेश दिया गया कि भारत की धरोहर यहीं रहेंगी। धीरे-धीरे मूर्तियों की संख्या बढ़ी, परंतु आम जनमानस उससे अनभिज्ञ थी।
आजादी के बाद बढ़ा स्वरूप
देश को आजादी मिलने के बाद 14 दिसंबर 1948 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की शहादत स्थल से चंद दूरी पर कंपनीबाग परिसर में मेरे (संग्रहालय) नए भवन की नींव रखी। बिल्डिंग तैयार होने के बाद 1953 में संग्रहालय नए भवन में आ गया। इससे आम जनता संग्रहालय में रखी सामग्रियों का दीदार करने लगी। संग्रहालय में 18 गैलरियों में प्रदर्शित हजारों कलाकृतियां, मूर्तियां, अस्त्र-शस्त्र, राजा-महाराजा व नेताओं के कपड़े, बर्तनों का बेशकीमती खजाना है।