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प्रयागराज में डॉक्टरों और नर्सों के दिल की बात, मरीज स्वस्थ हो जाएं भला और क्या चाहिए

डॉक्टर और नर्स खुद को खतरे में डालकर दूसरों की जान बचाने में जुटे रहे। इतना जोखिम उठाने के बाद भी बात करिए तो वे कहते हैं कि हमारे लिए तो यही बड़े सुकून की बात होती है कि मरीज ठीक होकर अस्पताल से विदा होकर घर पहुंच जाए बस

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 10 Jun 2021 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 10 Jun 2021 08:01 AM (IST)
अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स कोविडो मरीजों के बीच खुद को खतरे में डालकर दूसरों की जान बचाते रहे।

प्रयागराज, जेएनएन। पिछले सवा साल में कोरोना की पहली लहर और अब दूसरी लहर में जब लोग खुद की जान बचाने के लिए जूझ रहे थे तब अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स कोविडो मरीजों के बीच खुद को खतरे में डालकर दूसरों की जान बचाने में जुटे रहे। इतना जोखिम उठाने के बाद भी इनसे बात करिए तो वे कहते हैं कि हमारे लिए तो यही बड़े सुकून की बात होती है कि मरीज ठीक होकर अस्पताल से विदा होकर घर पहुंच जाए बस, एक डॉक्टर और नर्स को भला और क्या चाहिए।

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मरीजों की सेवा और खुद की सुरक्षा साथ

एसआरएन अस्पताल की सीनियर नर्सिंग ऑफिसर सुमन सिंह कहती हैं कि 18 अप्रैल से तीन मई तक कोविड वार्ड में ड्यूटी रही। पहले भी कोरोना मरीजों के बीच रहकर काम किया। बीच में अपनी तबीयत भी कुछ बिगड़ी लेकिन संक्रमित नहीं हुई। क्योंकि मास्क हमेशा लगाए रहे। ध्येय है कि मरीज स्वस्थ हो जाए, हमें और क्या चाहिए। कोरोना की पहली लहर में तो पीपीई किट पहनकर वार्ड में जाना होता था, इस बार स्थिति ज्यादा गंभीर रही, मरीजों की जान बचाने के लिए कभी-कभी बिना किट के ही गए। इंजेक्शन तक लगाना पड़ा। दवाइयां भी मरीजों को खुद ही खिलाना पड़ता है। लेकिन, घर में कोई संक्रमित न हो जाए इसका भी ख्याल रखना पड़ता है। पूरी तरह सैनिटाइज होकर ही परिवार से मिलते हैं। अस्पताल में वर्षों से मरीजों की चिकित्सकीय सेवा करते आए हैं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने वास्तव में सिखाया कि जब मरीज से उनके स्वजन दूरी बना लेते हैं तो हम नर्सों को कैसे उन्हें अपनापन देना पड़ता है। ऐसे में अपनी जान की परवाह भी नहीं रहती। बस यह लगता है कि मरीज की जान कैसे बच जाए। कोई भी एक मरीज जब कोरोना से स्वस्थ होकर डिस्चार्ज होता है तो दिल को काफी खुशी मिलती है। कोरोना जैसी त्रासदी फिर कभी न आए भगवान से यही कामना है।


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