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देव समर्पण का हिलोरें मारता समंदर, कुंभ के पहले शाही स्नान की साक्षी बनी लाखों आंखें

प्रयागराज कुंभ भारत की सतरंगी छटा का ऐसा चटक रंग कि जिसने देखा भाग्यशाली और जिसने नहीं देखा उससे सनातन संस्कृति का एक दमकता पक्ष छूट गया।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 09:06 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 11:04 AM (IST)
देव समर्पण का हिलोरें मारता समंदर, कुंभ के पहले शाही स्नान की साक्षी बनी लाखों आंखें
देव समर्पण का हिलोरें मारता समंदर, कुंभ के पहले शाही स्नान की साक्षी बनी लाखों आंखें

कुंभनगर, आशुतोष शुक्ल। नीलकंठ की आराधना का अनहद नाद है हर-हर महादेव, केसरिया बाने का युद्धघोष भी है हर-हर महादेव और वीणा की झंकृत वाणी भी है हर-हर महादेव। देवाधिदेव से कल्याण की कामना करते इन्हीं तीन शब्दों से सुशोभित थी मंगलवार की विभोर भोर। त्रिवेणी के जल में जैसे नृत्य कर रही थी पवित्र अग्नि की आभा और विस्मित, मुदित थीं वे लाखों आंखें जो प्रयागराज कुंभ के मकर संक्रांति पर हुए पहले शाही स्नान की साक्षी बनीं। 

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आना, नहाना और जाना

कुंभ भारत की सतरंगी छटा का ऐसा चटक रंग है कि जिसने उसे देखा वह भाग्यशाली और जिसने नहीं देखा उससे सनातन संस्कृति का एक दमकता पक्ष छूट गया। संगम, अखाड़े, रंग बिरंगे शिविर, चकित विदेशी, जहां-तहां होती कथाएं, प्रवचन और देव समर्पण का हिलोरें मारता समंदर... ये सब मिलकर एक ऐसा अलौकिक वितान रच देते हैं जिसे देख केवल निहाल हुआ जा सकता। सोमवार रात 2.12 के मुहूर्त से भी बहुत पहले से गंगा जमुना के विस्तृत घाटों पर नहान आरंभ हो गया था। आना, नहाना और जाना, कुंभ की यह सरलता साकार थी। गंगा के दर्शन मात्र से श्रद्धा कुलांचें भर रही थी। आम आदमी की इसी आस्था के साथ अखाड़ों का स्नान कुंभ को दैवीय बना रहा था। 

एक दृश्य देखें-जनवरी की सुबह, खुला मैदान और नदी का किनारा। ठंड लगनी चाहिए पर लग नहीं रही, क्योंकि पहले शाही स्नान की पहली डुबकी मारने महानिर्वाणी और अटल अखाड़े मौसम का पारा चढ़ा रहे हैं। साधुओं के दल बादल की तरह उमड़ रहे हैं और क्या अधिकारी, क्या जनता सबकी धुकधुकी बढ़ रही है। नागा आ रहे, नागा आ रहे की मौन घोषणा हावी है। उत्सुक टकटकी सड़क पर लगी है। फिर साधु प्रकट हुए। भीड़ ने दम बांध लिया। भीड़ बावली हुई जा रही। उसे अनुशासित रखने में पुलिस और प्रशासन के पसीने छूट रहे। पैदल, पालकी, डोली, ट्रैक्टर, एसयूवी और कंधा सवार साधुओं को देखने, उन्हें छूने का आकर्षण बैरिकेडिंग के बंधन भला क्यों मान ले। मकर संक्रांति पर पहले निर्मोही, फिर दिगंबर और तब निर्वाणी स्नान करते हैं। मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी पर यह क्रम बदल जाता है। अखाड़ों के स्नान का क्रम, समय और अवधि तय है। महानिर्वाणी को पुण्य स्नान के लिए 40 मिनट मिले हैं, लेकिन समय की बांध में कौन रुकता है भला। उनके बाद दिन भर अखाड़ों के स्नान का क्रम चलता रहा और उन्हें निहारने वाले बढ़ते रहे। 

अंत में मिलते हैं बरेली के अमरदीप से। पंजाब की किसी राइस मिल में नौकरी करने वाले अमरदीप साधुओं के जाने के बाद अंगोछे में वो मिट्टी भर रहे थे जिस पर साधुओं के चरण पड़े थे-चरण रज। 

कुंभ इसीलिए अद्वितीय 

  • 1.40 करोड़ लोगों ने आज किया संगम में स्नान
  • दो करोड़ पहुंची दो दिन में स्नानार्थियों की संख्या
  • 15 करोड़ लोगों के कुंभ में पहुंचने का अनुमान

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