जानिए, कौन थे इलाहाबाद हाईकोर्ट के पहले भारतीय न्यायमूर्ति
सैयद महमूद ने उच्च न्यायालय में स्थानापन्न जज के रूप में 1882 1984 तथा 1986 में काम किया। 1987 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के नियमित जज बने। सैयद महमूद को इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहला नियमित भारतीय जज बनने का गौरव प्राप्त है।
प्रयागराज, जेएनएन। ब्रिटिश काल में काफी समय तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में कोई भी भारतीय जज नहीं रहा था। अंग्रेजों ने न्याय व्यवस्था को 1887 तक पूरी तरह से अपने हाथ में ले रखा था। हालांकि उस समय हाईकोर्ट में काफी भारतीय अपनी प्रैक्टिस से नामचीन हो गए थे। इनमें काफी वकील लंदन से पढ़कर आए थे। जिनमें मोतीलाल नेहरू भी शामिल थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सैयद महमूद पहले नियमित भारतीय जज बनाए गए थे। वे मुस्लिम समाज के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद के पुत्र थे। सर सैयद अहमद ने ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। पिता के साथ सैयद महमूद इंग्लैंड गए थे। यहां उन्होंने कैंब्रिज एवं आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन भी किया था। सर सैयद अहमद भी जज रहे थे। वाराणसी की अदालत में वे 12 साल तक जज के रूप में कार्य किया था।
सैयद महमूद पहले नियमित जज थे
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अपर महाधिवक्ता रहे विजय शंकर मिश्र बताते हैं कि सैयद महमूद ने 13 नवंबर 1872 को कानून की परीक्षा पास की थी। एक अगस्त 1879 को प्रदेश सरकार के अधीन जिला जज (श्रेणी-तीन) के रूप में कार्य करना आरंभ किया। सैयद महमूद ने उच्च न्यायालय में स्थानापन्न जज के रूप में 1882, 1984 तथा 1986 में काम किया। 1987 में वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के नियमित जज बने। सैयद महमूद को इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहला नियमित भारतीय जज बनने का गौरव प्राप्त है।
आसानी से जवाब नहीं देते पाते थे वकील
सैयद महमूद उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान जजों में गिने जाते थे। अधिवक्ता विजय शंकर मिश्र बताते हैं कि न्यायमूर्ति सैयद महमूद की अदालत में वकील बहुत तैयारी से जाते थे। वे वकीलों से जिस तरह के सवाल करते थे उनका जवाब देना सबके लिए आसान नहीं था। उन्होंने कई मामलों में ऐसे निर्णय दिए थे जो बाद में यादगार बन गए। उनके पिता सर सैयद अहमद भी जज थे। वाराणसी की अदालत में वे 1864 से 1876 तक जज रहे। उन्होंने ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
सेवानिवृत्ति के बाद इलाहाबाद में ही रहे न्यायमूर्ति सैयद महमूद
अपर शासकीय अधिवक्ता समीर शंकर बताते हैं कि न्यायमूर्ति सैयद महमूद 1897 में रिटायर हो गए थे। उसके बाद कुछ दिन तक वे प्रयागराज से बाहर चले गए थे। बाद में वे यहां फिर लौट आए। प्रयागराज में सैयद महमूद नार्थ वेस्ट प्राविसेंज क्लब में रहने लगे। रिटायरमेंट के बाद वे बहुत रिजर्व रहते थे। उसी दौरान म्योर सेंट्रल कालेज के छात्रों ने लिटरेरी सोसाइटी बना रखी थी। इसमें व्याख्यान के लिए छात्र विशिष्ट लोगों को ही बुलाते थे। छात्रों ने न्यायमूर्ति महमूद को भी आमंत्रित किया पर वे तैयार नहीं हुए। बाद मेें कुछ छात्रों के काफी प्रयास के बाद उन्होंने व्याख्यान में आना स्वीकार किया था। सैयद महमूद का निधन 19 मई 1903 को हुआ था।