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फिराक गोरखपुरी के घर का नाम भी था दिलचस्प, जानिए किस नाम से लिए थे प्रयागराज में बिजली के दो कनेक्शन

साहित्यकार रविंनदन सिंह बताते हैं कि फिराक गोरखपुरी के घर का नाम महंगू था। उन्होंने अपने बैंक रोड स्थित निवास के लिए दो बिजली कनेक्शन लिए थे। एक रघुपति सहाय के नाम एम लाल के नाम से। उनकी हर मामले में निराली व्यवस्था थी।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 04:19 PM (IST)
फिराक गोरखपुरी के घर का नाम भी था दिलचस्प, जानिए किस नाम से लिए थे प्रयागराज में बिजली के दो कनेक्शन
बैंक रोड स्थित उनके आवास के दरवाजे हर आदमी के लिए खुले रहते थे।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सैकड़ों विद्वान शिक्षकों का नाता रहा है। इन्हीं में एक थे फिराक गोरखपुरी। आज तीन मार्च को पुण्यतिथि पर प्रयागराज में लोग उन्हें याद कर रहे हैं। उनका व्यक्तित्व निराला था। फिराक गोरखपुरी विश्वविद्यालय के बैंक रोड वाले बंगले में 1940 के बाद आकर रहे। उस समय विश्वविद्यालय के शिक्षक अधिकतर मोहल्लों में किराए के मकानों में रहने थे। उन दिनों बैंक रोड स्थित विश्वविद्यालय के बंगलों में कई डिप्टी कलेक्टर रहते थे। बैंक रोड के पहले वे पुलिस लाइंस के पास कचहरी रोड के एक मकान में रहते थे। बैंक रोड स्थित उनके आवास के दरवाजे हर आदमी के लिए खुले रहते थे। उन्होंने आवास में दो नाम से बिजली के कनेक्शन लिए थे।

घर का नाम था महंगू
साहित्यकार रविंनदन सिंह बताते हैं कि फिराक गोरखपुरी के घर का नाम महंगू था। उन्होंने अपने बैंक रोड स्थित निवास के लिए दो बिजली कनेक्शन लिए थे। एक रघुपति सहाय के नाम एम लाल के नाम से। उनकी हर मामले में निराली व्यवस्था थी। किसी कारण से वे अगर बैंक से रुपये निकालना भूल जाते थे तो प्रकाशक रामानारायण लाल के यहां लल्लू बाबू, प्रयागदास अथवा परमू बापू के पास चेक भिजवा देते थे और नगद रुपया मंगवा लेते थे।

नौकर से मांगी माफी
रविनंदन बताते हैं कि केवल पन्ना नाम का एक नौकर अंतिम दिनों तक उनके साथ रहा। अपने यहां आने वाले हर आदमी से वे नौकर लाने की बात कहते। वे कभी कभार रोजगार दफ्तर से किसी को पकड़ लाते थे। वे नौकरों की सुख सुविधा का ध्यान रखते थे पर गुस्से में पीट भी देते थे। एक बार उन्होंने खेलावन नाम के अपने एक नौकर को चप्पल मार दी। किंतु जब वह जोर-जोर से रोने लगा तो हाथ जोड़कर उससे माफी मांग ली। वे अपना अहित करने वालों का भी अहित नहीं करते थे।
 
उस जमाने में रखी थी कार
रविनंदन बताते हैं कि फिराक कचहरी के पास जालौन की रानी साहिबा के घर में भी रहे थे। उन्होंने एक कार घर में रखी थी। इस कार को अमृत बाजार पत्रिका प्रयागराज के संपादकीय विभाग के आर मुखर्जी प्राय: चलाते थे। वे फिराक साहब से लगभग रोजाना मिलने आते थे। हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था। वे लोगों को व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

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