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छप्पनछुरी की महफिल सजती थी तो चांदी के सिक्कों से पट जाता था मंच, जानिए कैसे पड़ा मशहूर गायिका जानकीबाई का यह नाम

प्रतियोगिता में हारने के बाद रघुनंदन दुबे ने बारह वर्षीय जानकीबाई को जान से मारने का फैसला किया। उसने सब्जी काटने वाले चाकू से जानकी बाई पर कई वार किए थे। जानकीबाई के शरीर पर छप्पन घाव हुए थे। तब से उन्हें छप्पन छुरी कहा जाने लगा।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 11 Feb 2021 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2021 07:00 AM (IST)
छप्पनछुरी की महफिल सजती थी तो चांदी के सिक्कों से पट जाता था मंच, जानिए कैसे पड़ा मशहूर गायिका जानकीबाई का यह नाम
प्रयागराज में अतरसुइया में एक चबूतरे पर छप्पनछुरी के गाने के दौरान चबूतरा चांदी के रुपये से पट गया था।

प्रयागराज, जेएनएन। यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मशहूर गायिका छप्पनछुरी का प्रयागराज से नाता था। आजादी के  पहले उनकी गायिकी के दीवानों में प्रयागराज की मशहूर शख्सियतें भी शामिल थीं। उनमें मोतीलाल नेहरू, तेजबहादुर सप्रू, तेजनारायण मुल्ला, न्यायमूर्ति कन्हैयालाल, अमरनाथ झा आदि शामिल थे। हालांकि छप्पनछुरी का असली नाम जानकीबाई था। उनके शरीर पर चाकू के छप्पन घाव होने के कारण उनका नाम छप्पनछुरी पड़ गया था। संगीत प्रतियोगिता में हारे हुए एक विरोधी ने उनके शरीर पर चाकू से अनगिनत वार किए थे। छप्पनछुरी के के प्रति लोगों की दीवानगी इस कदर थी कि अतरसुइया में एक चबूतरे पर उनके गाने के दौरान चबूतरा चांदी के रुपये से पट गया था।

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प्रयागराज के चौक घंटा के पास रहतीं थी
साहित्यकार अनुपम परिहार बताते हैं कि जानकीबाई प्रयागराज 1910 में प्रयागराज आ गई थी। पार्वती नामक एक महिला के प्रभाव में आकर उनका परिवार यहां आया था। चौक घंटाघर के पास एक मकान में वे रहती थीं। उनकी मां ने उन्हें गायन की शिक्षा दिलाई थी। जानकीबाई शायर भी थीं। अपने लिखे गाने खुद गाती थीं। उनकी गजलों का एक संग्रह दीवाने-जानकी 1915 के आसपास प्रकाशित हुआ था। अनुपम बताते हैं कि जानकीबाई उत्तर भारत तथा मध्य भारत के प्रमुख रियासतों तथा संगीत के आयोजन में जाती थीं। सारे भारत में उनके गानों की चर्चा थी।


एक दिन का एक हजार रुपये लेती थीं
जानकीबाई संगीत आयोजनों में गायन के लिए एक दिन का एक हजार से अधिक रुपये लेती थीं। धार्मिक समारोहों तथा मंदिरों के लिए वे कुछ भी नहीं लेती थीं। जानकीबाई ने 1911 में जार्जटाउन में एक विशाल संगीत आयोजन में गौहरबानो को निर्णायक रूप से शिकस्त दी थी। उन्होंने 12 बजे से गाना शुरू किया और चार बजे तक गाती रहीं। अनुपम परिहार बताते हैं कि एक बार वे अतरसुइया में एक चबूतरे पर गा रही थीं। वह चबूतरा चांदी से पट गया था। गिनती करने पर 14070 रुपये निकले थे।


गायकी में हारने वाले शख्‍स ने चाकू से जानकीबाई के शरीर पर किए थे 56 वार, बारह वर्ष में ही हो गई थी मशहूर
 अनुपम परिहार बताते हैं कि जानकीबाई बचपन में अपनी गायिकी को लेकर मशहूर हो गई थीं। उनका कंठ बहुत सुरीला था। उनका जन्म 1964 में वाराणसी में हुआ था। उनके पिता शिवबालक की मिठाई और पूड़ी की दुकान थी। जानकीबाई सांवले रंग की थी। चेहरे पर चेचक के दाग थे। वाराणसी के मंदिरों में होने वाले भजन कीर्तन को वह बहुत ध्यान से सुनती थीं। संगीत की शिक्षा उन्हें चेतगंज के पास रहने वाले संगीतज्ञ ने दी थी। 1876 में वाराणसी में एक संगीत प्रतियोगिता हुई थी। प्रतियोगिता में उन्होंने उस समय के प्रख्यात गायक रघुनंदन दुबे को परास्त कर अपनी धाक जमा दी थी। परिहार बताते हैंं कि प्रतियोगिता में हारने के बाद रघुनंदन दुबे ने बारह वर्षीय जानकीबाई को जान से मारने का फैसला किया। उसने सब्जी काटने वाले चाकू से जानकी बाई पर कई वार किए थे। चिकित्सकों के अनुसार जानकीबाई के शरीर पर छप्पन घाव हुए थे। तब से उन्हें छप्पन छुरी कहा जाने लगा। उनका छह वर्ष तक इलाज चला था तब वह ठीक हो पाई थीं।


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