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इलाहाबाद कुंभ : किन्नर संन्यासी बिखेरेंगे वैभव, अखाड़ा पर पेंच

मोक्ष की आस में संत-महात्माओं के साथ लाखों श्रद्धालु रेती में धूनी रमाकर भजन कीर्तन में लीन रहेंगे। प्रयाग की पवित्र धरा पर पहली बार किन्नर संन्यासी भी आने की तैयारी कर रहे हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 09:27 AM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 11:37 AM (IST)
इलाहाबाद कुंभ : किन्नर संन्यासी बिखेरेंगे वैभव, अखाड़ा पर पेंच
इलाहाबाद कुंभ : किन्नर संन्यासी बिखेरेंगे वैभव, अखाड़ा पर पेंच

इलाहाबाद [शरद द्विवेदी]। संगमनगरी इलाहाबाद में जनवरी 2019 में पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना व अदृश्य सरस्वती की मिलन स्थली संगम तट पर त्याग, श्रद्धा व समर्पण का प्रतीक कुंभ मेला लगेगा। इसी के साथ संगम तीरे तंबुओं की नगरी आबाद हो जाएगी। इस बार कुंभ में किन्नर संन्यासी भी वैभव बिखरेंगे।

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मोक्ष की आस में संत-महात्माओं के साथ लाखों श्रद्धालु रेती में धूनी रमाकर भजन कीर्तन में लीन रहेंगे। प्रयाग की उसी पवित्र धरा पर पहली बार किन्नर संन्यासी भी आने की तैयारी कर रहे हैं। अन्य संत-महात्माओं से इतर स्वयं की पहचान बनाने के लिए किन्नर संन्यासियों ने स्वयं का 'अखाड़ा' बनाया है। मेला प्रशासन से 13 अखाड़ों की भांति किन्नर अखाड़ा ने जमीन व सुविधा मांगी है, परंतु पेंच अखाड़ा को लेकर फंस गया है। मेला प्रशासन उन्हें किसी संस्था के नाम पर सुविधा मुहैया कराने को तैयार है, परंतु अखाड़ा नाम से न तो भूमि आवंटित करेगा, न ही सुविधा देगा। किन्नर की तरह महिलाओं के परी अखाड़ा को भी तवज्जो नहीं दी जाएगी। ऐसा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के विरोध के चलते हुआ है।

अखाड़ा परिषद धार्मिक परंपराओं का हवाला देते हुए सिर्फ 13 अखाड़ों को मान्यता देता है। इसके इतर किसी 14वें समूह को अखाड़ा की मान्यता नहीं मिली है। किन्नरों से पहले यहां महिलाओं का परी अखाड़ा भी बना था, उसे भी अखाड़ा परिषद ने मान्यता नहीं दी। इसके चलते विवाद से बचने के लिए मेला प्रशासन ने माघ मेला 2017 में किन्नरों को अखाड़ा के नाम पर जमीन व सुविधाएं नहीं दी थी।

अब कुंभ में भी किन्नर संन्यासियों को अखाड़ा के नाम पर किसी को जमीन व सुविधा नहीं देने का निर्णय लिया है। कुंभ मेला प्रशासन का कहना है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की जो परंपराएं और मान्यताएं हैं उससे इतर कोई काम नहीं किया जाएगा। अखाड़ा परिषद जिसे कहेगा उसी को उनके अनुरूप जमीन व सुविधाएं दी जाएंगी।

किन्नरों को अखाड़ा में आमंत्रण

किन्नरों के अलग अखाड़ा को मान्यता न देने वाला अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद उन्हें संन्यासी बनाने को राजी है। किन्नरों के लिए अखाड़ों ने अपने द्वार खोलते हुए उन्हें मंडलेश्वर व महामंडलेश्वर जैसी उपाधियां देने का निर्णय लिया है, लेकिन शर्त है कि संन्यास लेने वाले किन्नरों को सनातन धर्म की परंपरा के अनुरूप जीवनयापन करते हुए जप-तप में लीन रहना होगा। जो किन्नर इस शर्त का पालन करेंगे उन्हें अखाड़ा में शामिल किया जाएगा। यही नहीं, 13 अखाड़ों में से उन्हें किसी में भी शामिल होने की छूट दी गई है। उन्हें जो अखाड़ा पसंद हो, उससे जुड़ सकते हैं।

 

यह है किन्नर अखाड़ा का स्वरूप

किन्नरों ने उज्जैन कुंभ 2016 से पहले धर्मक्षेत्र में अपनी दस्तक दी। इसके लिए 13 अक्टूबर 2015 को उज्जैन स्थित अध्यात्म वाटिका हासमपुरा उज्जैन में 'किन्नर अखाड़ा' की स्थापना की गई। ऋषि अजय दास अखाड़ा के संस्थापक थे, जिन्होंने अब स्वयं को किन्नर अखाड़ा से अलग कर लिया है। किन्नर अखाड़ा को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14वें अखाड़े की मान्यता नहीं दी। आदिगुरु शंकराचार्य की परंपरा का हवाला देते हुए अखाड़ा परिषद द्वारा कहा गया कि 13 के अलावा कोई नया अखाड़ा नहीं बन सकता।

अखाड़ा परिषद से मान्यता न मिलने के बावजूद किन्नरों ने 2016 में हुए उज्जैन में हिस्सा लिया। हर अखाड़े की तरह पेशवाई निकालने के साथ शाही स्नान भी किया। अब वह 2019 में प्रयाग में लग रहे कुंभ मेला में उपस्थिति दर्ज कराएंगे। किन्नर अखाड़े के आचार्य पीठाधीश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने प्रशासन को 13 अखाड़ों की भांति जमीन व सुविधाएं मांगी है। इधर अखाड़ों के किन्नरों को दीक्षित करने के निर्णय को किन्नर अखाड़ा के प्रभाव को कम करने के रूप में देखा जा रहा है।

मान्यता की जरूरत नहीं : लक्ष्मीनारायण

हम पैदाइशी संन्यासी हैं, हमें सूतक भी नहीं लगता। सही मायने में कहा जाए तो हममें ही देवत्व है। यह किसी दूसरे व्यक्ति में नहीं मिलेगा। हमें न अखाड़ा परिषद से मान्यता की जरूरत है, न उनके सहयोग की। यह कहना है किन्नर अखाड़ा की आचार्य पीठाधीश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का। वह कहती हैं कि अखाड़ा परिषद से 14वें अखाड़ा के रूप में मान्यता की हमें जरूरत नहीं है। रही बात अखाड़ों में किन्नरों को दीक्षित करने की तो यह दिखावटी पहल है।

किन्नर अखाड़ा से भयभीत होकर निर्णय लिया है। उन्हें किन्नरों से दिक्कत नहीं है तो किन्नर अखाड़ा को मान्यता क्यों नहीं दे रहे? मैंने उज्जैन कुंभ में अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों से मिलकर धर्महित में साथ काम करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वह नहीं माने। किन्नर अखाड़ा का लक्ष्य किन्नरों को धार्मिक अधिकार व सम्मान दिलाने के साथ समाज के हर वर्ग के लोगों को धर्म के सही स्वरूप से जोडऩा है। धार्मिक आडंबरों को खत्म करके सनातन धर्म से लोगों को जोडऩे की मुहिम चलाएंगे।

किन्नरों का सम्मान, अखाड़ा का नहीं : नरेंद्र गिरि

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि हम किन्नरों का सम्मान करते हैं। यही कारण है कि हमने किन्नरों को अखाड़ों में दीक्षित करने का निर्णय लिया है। वह किसी भी अखाड़े से जुड़कर धर्महित में काम कर सकते हैं, लेकिन किन्नरों को अलग अखाड़ा को मान्यता नहीं दी जाएगी, क्योंकि वह सनातन धर्म की परंपरा के खिलाफ है। यह काम किसी कीमत पर नहीं किया जाएगा।

मानेंगे अखाड़ा परिषद का निर्देश : मेलाधिकारी

कुंभ मेलाधिकारी विजय किरन आनंद का कहना है कि अखाड़ा के रूप में किसको सुविधा मिलनी है यह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को तय करना है। यह उनकी परंपरा से जुड़ा मामला है जिसमें प्रशासन कोई दखल नहीं देगा। वैसे भी इस बारे में बाढ़ खत्म होने के बाद कोई भी निर्णय लिया जाएगा।  


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