कौशांबी में मवेशियों में बांझपन की समस्या से जूझ रहे किसान, जानिए क्या है कारण
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बीपी पाठक का कहना है कि यह बीमारी पोषक तत्वों की कमी से होती है। मवेशियों को हरे चारे में बरसीम व जई की खुराक नियमित रूप से देते रहना चाहिए। पशुओं के रखरखाव व खाने पीने की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
कौशांबी, जेएनएन। मवेशियों में बांझपन की समस्या ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। इससे किसानों को जहां आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं बांझपन से बेसहारा छोड़े गए मवेशी फसल चट कर नुकसान कर रहें है। इस बीमारी से बचाव के लिए पशुपालन विभाग फिलहाल कोई खास पहल नहीं कर पा रहा है। ऐसे में किसान खासे परेशान हो गए हैं।
दुधारू पशुओं में ज्यादा समस्या
पशुपालन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि दुधारू मवेशियों में बांझपन की समस्या अधिक होती है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बीपी पाठक का कहना है कि यह बीमारी सामान्यतया पोषक तत्वों की कमी से होती है। इसे दूर करने के लिए मवेशियों को हरे चारे में बरसीम व जई की खुराक नियमित रूप से देते रहना चाहिए। पशुपालकों को पशुओं के रखरखाव व खाने पीने के लिए समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
देखरेख भी बेहद जरूरी
ज्यादा रुपये खर्च कर पशुपालक अच्छी नस्ल की गाय और भैंस तो खरीदकर कर पाल लेते हैं, लेकिन उनकी देखरेख और भरपूर मात्रा में पोषक तत्व युक्त आहार नहीं दे पाते है। इससे पशु एक-दो ब्यात के बाद ही बांझपन के शिकार हो जाते हैं। विभाग के पिछले पांच वर्ष आकड़ों के अनुसार 6861 बांझ मवेशी में 3016 मवेशियों के इलाज के बाद 2646 मवेशी प्रजनन योग्य हो गए हैं।
पोषक तत्व मिलना है जरूरी
इलाज में अधिक खर्च और गायों के गर्भधारण न करने पर पशुपालक उन्हें बेसहारा छोड़ देते है। यही मवेशी खेतों में फसलों को चरकर नष्ट करने लगते है। दुधारू मवेशियों को यदि उचित मात्रा में पोषक तत्व आहार मिलता रहे तो पशुओं में बांझपन की बीमारी नहीं होगी। निदान के लिए विभाग अस्पतालों में कैंप लगाकर अनुभवी चिकित्सक से इलाज कर दवाएं भी उपलब्ध करवाता हैं।
कहां से बढ़ रही है बेसहारा मवेशियों की संख्या
पशुपालन विभाग के आकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्ष में 411 बांझपन शिविर आयोजन किया गया है। चिकित्सकों ने 3016 बांझ मवेशियों को इलाज के बाद 2646 मवेशी प्रजनन योग्य हो गए है। जनपद के 61 गोशालाओं में पांच हजार से अधिक बेसहारा मवेशी संरक्षित किए गए। इसके बाद भी हर गांव में झुंड के झुंड मवेशी फसल नष्ट कर रहे है। विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पशुपालन विभाग कागजी आकड़ों पर ही चल रहा है। वास्तविकता तो यह है कि इलाज के लिए विभाग के पास डाक्टर ही उपलब्ध नही है। फार्मासिस्ट और पशुधन प्रसार अधिकारी कागजी आंकड़ों में ही उलझे रहते है।