श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संशोधित किया आदेश, अब 27 जनवरी को सुनवाई
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणासी की तरफ से अपर जिला जज वाराणसी के आदेश की चुनौती में दाखिल याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं। समयाभाव के कारण सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। अब अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित भगवान विश्वेश्वरनाथ मंदिर-मस्जिद विवाद की सुनवाई जारी है। अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी। हाई कोर्ट ने 20 जनवरी के अपने आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि अंतरिम आदेश जारी नहीं है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणासी की तरफ से अपर जिला जज वाराणसी के आदेश की चुनौती में दाखिल याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं। समयाभाव के कारण सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। याचिका में वाराणसी में दाखिल स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के सिविलवाद को उपासनास्थल (विशेष उपबंध) कानून 1991 की धारा-4 से बाधित मानते हुए निरस्त करने की मांग की गई है।
काशी विश्वनाथ मंदिर की तरफ से कहा गया कि तहखाने व आसपास लगातार पूजा अर्चना हो रही है, इसलिए अवैध निर्माण हटाकर मंदिर का पुनरुद्धार करने की अनुमति देते हुए याचिका खारिज की जाए।
मामले के अनुसार 18 अक्टूबर 1991 को स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी सिविल वाद दायर किया गया। इसमें तहखाने के ऊपर निर्माण सहित पुराने मंदिर के हिस्से व नौबतखाना को भगवान विश्वेश्वरनाथ की संपत्ति घोषित करने, हिंदुओं को मंदिर का पुनरुद्धार करने का अनुमति देने तथा मंदिर भूमि पर मुस्लिम समुदाय के कब्जे को अवैध घोषित करने की मांग की गई है। साथ ही अवैध निर्माण हटाकर वादी को कब्जा सौंपा जाए और सेवा, पूजा, राज भोग में हस्तक्षेप पर स्थायी रोक लगायी जाए।
याची ने 1991 के उपासना स्थल कानून के तहत आपत्ति दाखिल कर 15 अगस्त 1947 की स्थिति बरकरार रखे जाने व मुकदमे को खारिज करने की मांग की। कोर्ट ने वाद बिंदुओं को तय किया कि क्या न्याय शुल्क पर्याप्त है और क्या वाद धारा-4 से वर्जित होने के कारण निरस्त करने योग्य है। वादी ने इन वाद बिंदुओं को वापस लेने की अर्जी दी। इस पर याची ने आपत्ति की।
कोर्ट ने धारा-4 में वर्जित मानते हुए मुकदमा खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ वादी ने अपर जिला जज के समक्ष पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सिविल जज के आदेश को रद कर दिया। इस आदेश को याचिका में चुनौती दी गई है, जिसकी सुनवाई जारी है।