हाईकोर्ट के 92 न्यायाधीशों के सामने नौ लाख लंबित मुकदमे निबटाने की चुनौती
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 92 न्यायाधीशों पर 909065 मुकदमे निस्तारित करने की बड़ी चुनौती है। जजों की जल्दी नियुक्ति की संभावना भी कम है।
इलाहाबाद (जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 92 न्यायाधीशों पर 909065 मुकदमे निस्तारित करने की बड़ी चुनौती है। अगले कुछ महीनों में एक दर्जन से अधिक न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो रहे हैं ऐसे में यह चुनौती और गंभीर हो जाएगी। हालांकि 33 अधिवक्ताओं और 15 जिला जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव कोलेजियम की ओर से भेजा गया है लेकिन, जिस धीमी गति से गोपनीय जांच की प्रक्रिया चल रही है उससे हाईकोर्ट में जजों की जल्दी नियुक्ति की संभावना कम है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए मार्च 2015 में 19 वकीलों का प्रस्ताव भेजा गया था जिसमें केवल छह की ही नियुक्ति हो सकी है। तीन जज 2016 के अंत में और तीन जज 2017 की शुरुआत में नियुक्त किए गए। अप्रैल 2017 में 31 नाम भेजे गए जिनमें केवल 19 को ही उपयुक्त पाया गया। सितंबर 2017 में उनकी नियुक्ति हो सकी। फरवरी 2018 में 33 वकीलों का नाम कोलेजियम को भेजा गया जिस पर इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आइबी की जांच चल रही है। अप्रैल 2018 में 15 जिला न्यायाधीश के नाम भी भेजे गए। ऐसे में कुल 48 नामों की आइबी जांच हो रही है।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के कुल 160 पद स्वीकृत हैं। जुलाई में न्यायाधीशों की संख्या 92 होगी। फिर भी 68 पद रिक्त रहेंगे। इससे रोज दाखिल होने और अन्य लंबित मुकदमों की संख्या व इनके निस्तारण की धीमी गति के चलते हाईकोर्ट पर बोझ बढऩा स्वाभाविक है। हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी का कहना है कि उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति कानून रद होने के बाद मेमोरंडम ऑफ प्रोसीजर लागू नहीं हो सका है। जिसके चलते कोलेजियम सिस्टम प्रभावी है। अपने लोगों के नाम भेजने की होड़ के चलते आम अधिवक्ता के लिए न्यायाधीश बनना कठिन है। उन्होंने कहा कि जजों की समय से नियुक्ति करने के संबंध में सरकार को ठोस पहल करनी चाहिए, क्योंकि कोलेजियम सिस्टम जिस उद्देश्य को लेकर लागू किया गया है वह पूरा नहीं हो सका। ऐसे में सरकार को पारदर्शी व स्पष्ट नीति लागू करने के कदम उठाने होंगे।