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जवाहर पंडित हत्याकांड : बहुचर्चित मुकदमे का 23 साल, दो माह और 21 दिन का रहा सफरनामा Prayagraj News

जवाहर पंडित हत्‍याकांड मामले के मुकदमे में छह अपर जिला जजों ने सुनवाई की। एडीजे बद्री विशाल पांडेय ने मुकदमे की अंतिम बहस सुनी और दोष सिद्ध करार देते हुए सजा सुनाई।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 05 Nov 2019 02:38 PM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2019 06:47 PM (IST)
जवाहर पंडित हत्याकांड : बहुचर्चित मुकदमे का 23 साल, दो माह और 21 दिन का रहा सफरनामा Prayagraj News
जवाहर पंडित हत्याकांड : बहुचर्चित मुकदमे का 23 साल, दो माह और 21 दिन का रहा सफरनामा Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। पूर्व विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड का मुकदमा 23 साल, दो माह और 21 दिनों तक चला। इस बहुचर्चित मुकदमे का फैसला अपर जिला जज बद्री विशाल पांडेय ने सुनाया है। इससे पहले पांच अपर जिला जज (एडीजे) इस मुकदमे की सुनवाई कर चुके हैं। अभियुक्तों की अर्जी हाईकोर्ट से खारिज हुई थी, जिसके बाद फिर से मुकदमे की सुनवाई जिला अदालत में शुरू हुई थी।

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मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति मिली थी

एडीजे भोपाल सिंह ने आरोप तय किया था। एडीजे प्रेमनाथ ने अभियोजन पक्ष के गवाहों का बयान व बचाव पक्ष की जिरह दर्ज की। साथ ही करवरिया बंधुओं को उनकी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी थी। एडीजे रमेश चंद्र ने बचाव पक्ष के गवाहों का बयान दर्ज किया और सरकार की मुकदमा वापसी की अर्जी पर सुनवाई की। एडीजे पवन कुमार तिवारी और एडीजे इंद्रदेव दुबे ने बचाव पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज किए। एडीजे बद्री विशाल पांडेय ने मुकदमे की अंतिम बहस सुनी और दोष सिद्ध करार देते हुए सजा सुनाई।

कब और क्या-क्या हुआ

13 अगस्त 1996 को घटना हुई। उसी रात सिविल लाइंस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ। 20 जनवरी 2004 को कोर्ट में आरोप पत्र पेश किया गया। वर्ष 2008 में मामले की अग्रिम विवेचना हुई। 2013 में हाईकोर्ट से मामले की कार्यवाही में स्टे खारिज हुआ। एक जनवरी 2014 को पूर्व विधायक उदयभान करवरिया ने आत्मसमर्पण किया। 2015 में मुकदमा परीक्षण के लिए जिला न्यायालय के सुपुर्द किया गया। अप्रैल 2015 में हाईकोर्ट से पुन: स्थगन आदेश खारिज हुआ। मई 2015 में आरोप तय हुए। सितंबर 2015 में सरकारी पक्ष की गवाही शुरू हुई जो अक्टूबर में पूरी हुई। अक्टूबर 2017 में बचाव पक्ष की गवाही शुरू हुई। नवंबर 2018 में शासन की ओर से मुकदमा वापसी की अर्जी दी गई। फरवरी 2019 में शासन की तरफ से मुकदमा वापसी की अर्जी खारिज कर दी गई। अगस्त से सितंबर 2019 तक सरकारी पक्ष की बहस हुई। सितंबर से अक्टूबर 2019 तक बचाव पक्ष की ओर से बहस की गई। 31 अक्टूबर 2019 को सभी आरोपित दोष सिद्ध करार दिए गए। चार नवंबर 2019 को सजा सुनाई गई।

हत्याकांड में तीन की मौके पर हुई थी मौत, दो घायलों में एक ने तोड़ा था दम 

विधायक जवाहर पंडित, उनके ड्राइवर गुलाब यादव और कमल कुमार दीक्षित को गोलियों से भून दिया गया था। राहगीर पंकज श्रीवास्तव व कल्लन यादव जख्मी हुए थे। गंभीर रूप से घायल कल्लन यादव की भी कुछ दिनों बाद मौत हो गई थी। घटना के बाद जवाहर पंडित के सगे भाई सुलाकी यादव ने कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, रामचंद्र त्रिपाठी, और श्याम नारायण करवरिया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

सीबीसीआइडी ने की थी विवेचना

हत्याकांड की विवेचना पहले सिविल लाइंस पुलिस ने की और फिर मुकदमा सीबीसीआइडी को ट्रांसफर कर दिया गया। पहले सीबीसीआइडी प्रयागराज ने विवेचना की फिर वाराणसी सीबीसीआइडी को भेजी गई। इसके बाद लखनऊ सीबीसीआइडी ने विवेचना पूरी करके 20 जनवरी 2004 को आरोप पत्र कोर्ट में पेश किया। 

एक गवाह, एक आरोपित की मौत

हत्याकांड के चश्मदीद गवाह सुलाकी यादव की बीमारी के कारण मौत हो चुकी है। वहीं, नामजद आरोपित श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला की मौत भी हो चुकी है। इस वजह से उनके विरुद्ध चल रही कार्यवाही समाप्त हो चुकी है। मुकदमे में सुलाकी यादव की गवाही हो चुकी थी।

बचाव पक्ष से 156 और अभियोजन की तरफ से 18 गवाह पेश

अभियुक्तों को निर्दोष साबित करने के लिए कोर्ट में कुल 156 गवाह पेश किए गए। इसमें राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा भी हैैं। अभियोजन की ओर से कुल 18 गवाहों की गवाही कराई गई। इसमें सुलाकी यादव, राजेंद्र कुमार और रामलोचन यादव मुख्य हैैं। वादी मुकदमा सुलाकी यादव की मौत के बाद जवाहर की पत्नी पूर्व विधायक विजमा यादव ने बतौर वादी मुकदमा पैरवी शुरू की। डॉक्टर वीके गोयल, डॉ. एके गुप्ता और डॉ. अजय कुमार के भी बयान दर्ज हुए थे।

इन्होंने की हत्याकांड की विवेचना

हत्याकांड की पहली विवेचना इंस्पेक्टर आत्माराम दुबे ने की। फिर इंस्पेक्टर राधा मोहन दुबे ने शुरू की। मुकदमा सीबीसीआइडी को ट्रांसफर हुआ तो इंस्पेक्टर रूपमंगल ने विवेचना शुरू की। इंस्पेक्टर शिवरतन ने भी मुकदमे की विवेचना की और फिर इंस्पेक्टर पुत्तू लाल प्रभाकर ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की।

पैरवी से हटाए गए थे आरपी सिंह

मुकदमे में अभियोजन अधिकारी व विशेष शासकीय अधिवक्ता आरपी सिंह सरकार का पक्ष रख रहे थे। एक अभियुक्त के विरोध पर आरपी सिंह को शासन ने हटा दिया था।

फैसला देखने को तरसे डीजीसी

शासकीय अधिवक्ता गुलाब चंद्र अग्रहरि फैसले की घोषणा के बाद सोमवार की शाम पांच बजे फिर कोर्ट रूम में पहुंचे। वह फैसला पढऩा चाहते थे, लेकिन कर्मचारी ङ्क्षहदी में आए फैसले की नकल आरोपितों को देने के बाद मूल कॉपी लेकर चले गए। इस कारण डीजीसी पूरा फैसला नहीं पढ़ सके।

ज्ञानपुर के मूल निवासी हैैं एडीजे बद्री विशाल पांडेय

अपर जिला जज बद्री विशाल पांडेय पुत्र विमलेंदु भूषण पांडेय संत रविदास नगर (भदोही) जिले के ज्ञानपुर तहसील के सिंहपुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने वर्ष 1999 में एलएलबी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वह अगस्त 2013 से मई 2017 तक गोरखपुर जिला अदालत में कार्यरत रहे।  मई 2017 में उनका स्थानांतरण प्रयागराज हुआ।


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