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UP: हत्यारोपी को नाबालिग साबित करने में लग गए 38 साल, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से हाई कोर्ट ने दिया फैसला

हत्या के अपराध में उम्रकैद की सजा पाने वाले आरोपित को खुद को नाबालिग साबित करने में 38 साल लग गए। सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने मेडिकल साक्ष्यों के आधार पर आरोपित को घटना के वक्त नाबालिग पाया।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 10:03 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 10:04 PM (IST)
UP: हत्यारोपी को नाबालिग साबित करने में लग गए 38 साल, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से हाई कोर्ट ने दिया फैसला
हत्या में उम्रकैद की सजा पाने वाले आरोपित को खुद को नाबालिग साबित करने में 38 साल लग गए।

प्रयागराज, जेएनएन। हत्या के अपराध में उम्रकैद की सजा पाने वाले आरोपित को खुद को नाबालिग साबित करने में 38 साल लग गए। आरोपित कानपुर के रामविजय सिंह ने निचली अदालतों से लेकर हाई कोर्ट तक फरियाद की लेकिन, राहत नहीं मिली। उसने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने मेडिकल साक्ष्यों के आधार पर आरोपित को घटना के वक्त नाबालिग पाया। हालांकि रामविजय को सजा सुनाई गई है। सजा के खिलाफ अपील पर अब फैसला सुप्रीम कोर्ट में होगा। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज नकवी व न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की खंडपीठ ने की।

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याची को लखन सिंह और शिवविजय सिंह के साथ 20 जुलाई, 1982 में हुई हत्या की घटना में आरोपित बनाया गया। मुकदमे के विचारण के बाद तीन सितंबर 1983 को सेशन कोर्ट कानपुर ने हत्या का दोषी करार देते हुए उसे व अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में सात सितंबर 1983 को अपील दाखिल हुई। हाई कोर्ट ने याची को जमानत पर रिहा कर दिया।

इसके करीब 32 साल बाद 28 अक्टूबर 2015 को याची रामविजय ने हाई कोर्ट में यह कहते अर्जी दाखिल की कि घटना के दिन उसकी उम्र 13 साल के करीब थी और वह नाबालिग था। उसकी अर्जी लंबित रही और हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल, 2020 को अपील खारिज करते हुए सेशन कोर्ट के निर्णय को सही करार दिया। हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ याची ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की।

याची के अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी का कहना था कि रेडियोलॉजी रिपोर्ट के आधार पर इस अदालत ने आरोपित रामविजय को विचारण लंबित रहने के दौरान ही जमानत पर रिहा कर दिया था। लेकिन, 22 अक्टूबर 1982 को सेशन कोर्ट द्वारा सुनाए गए आदेश में रेडियोलॉजी रिपोर्ट रिकार्ड में नहीं है। इस रिपोर्ट को किसी ने चुनौती नहीं दी, इसलिए उसी रिपोर्ट को सही मानते हुए याची को नाबालिग घोषित किया जाय।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय लखनऊ को विशेषज्ञों की टीम बनाकर याची की आयु का निर्धारण करने का निर्देश दिया। विशेषज्ञों की टीम ने 18 सितंबर 2020 को अपनी रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में याची रामविजय की आयु 40 से 55 वर्ष के बीच बताई गई। कोर्ट ने माना कि इस हिसाब से घटना के समय रामविजय की आयु हर हाल में 17 वर्ष से कम थी। इस आधार पर वह नाबालिग था।


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