रो पड़ता है मन मगर ड्यूटी से घर आने पर बच्चों से रहते हैं दूर, प्रयागराज पुलिस की ये दास्तां
कोरोना महामारी के इस दौर ने बच्चों और उनके माता-पिता के बीच दूरी बढ़ा दी है। कुछ ऐसा ही है पुलिस विभाग में कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों के साथ। फर्ज के आगे कलेजे के टुकड़ों से इन्होंने दूरी बना ली है। बच्चों को दूर से देखकर सुकून पा लेते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। लाख बंदिशें हो, लेकिन बच्चों से माता-पिता दूर नहीं रह पाते। लेकिन कोरोना महामारी के इस दौर ने बच्चों और उनके माता-पिता के बीच दूरी बढ़ा दी है। कुछ ऐसा ही है पुलिस विभाग में कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों के साथ। फर्ज के आगे कलेजे के टुकड़ों से इन्होंने दूरी बना ली है। बच्चों को दूर से देखकर ही ये सुकून पा लेते हैं। बच्चे इनकी तरफ दौड़ते हैं तो खुद को कमरे में या तो बंद कर लेते हैं या फिर परिवार के अन्य सदस्यों से इनको रोकने के लिए कहते हैं।
फर्ज के आगे कलेजे के टुकड़ों से पुलिसर्किमयों ने बनाई दूरी
एयरपोर्ट सुरक्षा प्रभारी इंस्पेक्टर अंबिका कुमारी। इनके दो बच्चे हैं। 11 वर्ष का उत्कर्ष और पांच वर्ष की पुत्री समृद्धि। शाम को जब वह ड्यूटी से घर आती हैं तो बच्चे मां की तरफ दौड़ते हैं। लेकिन अंबिका ङ्क्षसह उनको दुलार नहीं पाती है। वजह यह है कि वह दिनभर ड्यूटी करती हैं और नहीं चाहती कि उनके बच्चे किसी मुसीबत में आएं। उनका कहना है कि अभी फर्ज निभा रही हूं। दूसरों की ङ्क्षजदगी बचानी है। बच्चों का मन बहलाने के लिए कहती हैं कि कोरोना महामारी खत्म हो जाएगी तो कहीं बाहर घूमने चलेंगे। लेकिन तब तक दूर रहो। मऊआइमा में तैनात उपनिरीक्षक रणजीत ङ्क्षसह का पुत्र अक्षत भी जब ड्यूटी से लौटे अपने पिता को देखता है तो उनकी गोद में खेलने के लिए दौड़ता है, जिस पर वे खुद ही दूसरे कमरे में चले जाते हैं और परिवार के अन्य सदस्यों से बच्चे को पकडऩे के लिए कहते हैं। उनका कहना है कि ड्यूटी के दौरान वे तमाम लोगों के संपर्क में आते हैं। ऐसे में बच्चे की सुरक्षा को देखते हुए वह दूरी बनाकर रहते हैं। जीवन ज्योति चौकी प्रभारी दीपक कुमार का पुत्र विशू भी पिता के दुलार को तरसता है। दीपक ड्यूटी से घर लौटने के बाद खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं। बच्चा पापा बोलता रहता है, लेकिन वह बच्चे के करीब नहीं आते।
फर्ज के साथ बच्चों की सुरक्षा भी जरूरी
शाहगंज थाने में तैनात आशीष यादव का दस माह का पुत्र है। पिता को देखते ही वह धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। आशीष का मन भी उसे गोद में उठाकर खिलाने को होता है, लेकिन बच्चे की सुरक्षा को देखते हुए वह करीब नहीं आते। दूर से ही उसे पुकारते रहते हैं। इसी तरह तमाम पुलिसकर्मी हैं, जिन्होंने फर्ज के आगे कलेजे के टुकड़ों से दूरी बनाई हुई है।