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Independence Day 2020 : प्रयागराज के बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा है आजादी के संघर्ष की दास्‍तां

Independence Day 2020 प्रयागराज के बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में अमन चैन नहीं था। अंग्रेज कब किस पर अत्याचार करने लगें पता नहीं चलता था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 09:12 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 09:12 AM (IST)
Independence Day 2020 : प्रयागराज के बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा है आजादी के संघर्ष की दास्‍तां
Independence Day 2020 : प्रयागराज के बुजुर्गों के जेहन में आज भी ताजा है आजादी के संघर्ष की दास्‍तां

प्रयागराज, जेएनएन। देश को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकालने के लिए लंबा संघर्ष किया गया था। अंग्रेजों को खदेडऩे के लिए उस समय बिना किसी आधुनिक उपकरण के लोगों का सूचना तंत्र इतना मजबूत था कि गोरों का पसीना छूट जाता था। पूरे योजनाबद्ध और एकजुट होकर लोगों ने देश को आजाद कराने का जो सपना बुना था, वह 15 अगस्त 1947 को सार्थक भी हुआ। पूरा देश जोश के साथ झूम उठा। उस समय अंग्रेजों ने क्या जुल्म किए थे और कैसे लोगों ने इसका मुकाबला किया, इसे लेकर दैनिक जागरण ने कुछ बुजुर्गों से बात कर उस समय की दास्तां सुनीं। प्रस्तुत हैं उसके अंश।

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गांव के मुहाने पर एक व्यक्ति देता था पहरा

ये हैं शांतिपुरम कालोनी के प्रभु नाथ मिश्रा। ये सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। उम्र करीब 87 वर्ष है। बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में अमन चैन नहीं था। अंग्रेज कब किस पर अत्याचार करने लगें, पता नहीं चलता था। अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए गांव में चुपके-चुपके ग्रामीणों की बैठक होती थी। प्रतिदिन गांव के बाहर मुहाने पर एक व्यक्ति को पहरेदार के रूप में तैनात किया जाता था। अंग्रेजों के आने की जैसे ही आहट मिलती, वह दौड़कर सभी को सूचना दे देता था, जिस पर सभी लोग बच जाते थे। कहते हैं कि आजादी के लिए उस समय लोगों ने बड़ा संघर्ष किया और जब देश आजाद हुआ तो हर घर में दीप जले। वैसी खुशी आज तक उन्होंने नहीं देखी।

सुनसान जगह पर बनती थी रणनीति

फाफामऊ गांव के सतनारायण सिंह अपने जीवन में 92 बसंत देख चुके हैं। बताते हैं कि अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए तरह-तरह से ग्रामीण हथकंडे अपनाते थे। दिन ढलने के बाद किसी भी घर में दीप नहीं जलाए जाते थे, क्योंकि डर रहता था कि कहीं अंग्रेज रोशनी देखकर चले न आएं। गोरों से छिपकर लोग गांव के बाहर सुनसान जगह पर एकत्र होते थे। यहां अंग्रेजी हुकूमत से लडऩे के लिए रणनीति बनती थी। आजादी के लिए लडऩे वालों की मदद के लिए गांव का हर व्यक्ति हमेशा तैयार रहता था। जब आजादी मिली तो लोग खुशी से झूम उठे थे। अपना सारा कामकाज छोड़कर वह जोश से इतने लबरेज थे कि उनके मुख से सिर्फ भारत माता की जय के नारे ही निकल रहे थे।

पिताजी के साथ 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' का नारा किया था बुलंद

लाउदर रोड स्थित कुलभाष्कर परिसर में रहने वाले श्याम बिहारी जायसवाल करीब 88 वर्ष के हैं। कहते हैं कि आजादी के लिए जो संघर्ष उस समय लोगों ने किया, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अंग्रेजों के हर अत्याचार का सामना किया और आखिर में जीत हमारी हुई। जब देश आजाद हुआ तो उनकी उम्र 14 वर्ष थी। पिता कालूराम जायसवाल के साथ तिरंगा हाथ में लेकर 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' का नारा बुलंद किया था। सभी लोग एक-दूसरे के गले मिल रहे थे। लोगों का जत्था कल्याणी देवी स्थित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के आवास पर पहुंचा था। यहां जश्न मनाया गया और यहां से करीब 50 हजार की भीड़ पैदल ही आनंद भवन पहुंची। वहां पर पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने सभी का अभिवादन किया था।

दारोगा कमला सिंह ने खूब दिया था साथ

बाघंबरी गद्दी के पास रहने वाले नरेश मिश्रा की उम्र करीब 92 वर्ष है। आजादी की कहानी सुनाते-सुनाते उनकी आंखें भर आती हैं। कहते हैं कि अंग्रेजों का अत्याचार बहुत था लेकिन दारागंज क्षेत्र में अंग्रेजों की चलती नहीं थी। दारागंज थाने में उस समय गाजीपुर के रहने वाले कमला सिंह दारोगा थे। करीब 15 वर्ष तक वे यहां रहे। अंग्रेज जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखकर देते थे, दारोगा कमला सिंह उस पर फाइनल रिपोर्ट लगाकर फाइल बंद कर देते थे। बताते हैं कि आनंद भवन में अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनती थी। जब देश आजाद हुआ तो दारागंज में एक विशाल जुलूस निकला था। लोगों में गजब का जोश था। हर कोई अपने-अपने तरीके से आजादी का जश्न मना रहा था।


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