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Independence Day 2020 : अहा...आजादी, आशा की नई किरण लेकर आई थी 15 अगस्त 1947 सुबह Prayagraj News

Independence Day 2020 15 अगस्त 1947 की मिली आजादी की पहली सुबह सेवानिवृत्‍त शिक्षक रामशंकर को भी याद है1 प्रयागराज में वह अपनी याद को ताजा कर रहे हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 01:50 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 02:28 PM (IST)
Independence Day 2020 : अहा...आजादी, आशा की नई किरण लेकर आई थी 15 अगस्त 1947 सुबह Prayagraj News
Independence Day 2020 : अहा...आजादी, आशा की नई किरण लेकर आई थी 15 अगस्त 1947 सुबह Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। उम्मीद, उत्साह व उत्सव से भरपूर थी 15 अगस्त 1947 की सुबह। सदियों की गुलामी से मुक्ति मिलने की खुशी व्यक्त करने को शब्द साथ नहीं दे रहे थे। सुबह चार-पांच बजे से हर घर से घंटा-घडिय़ाल व थाली की गूंज सुनाई देने लगी। सैकड़ों लोग सड़कों पर निकलकर 'भारत माता की जय, वंदेमातरम, टूट गई गुलामी की जंजीर-अब भारत हमारा है' जैसे नारे लगाकर एक-दूसरे के गले लगकर खुशी व्यक्त कर रहे थे। सबके लिए वह सुबह आशा की नई किरण लेकर आई थी। 

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सेवानिवृत्‍त शिक्षक रामशंकर की यादें

यह यादें हैं सेवानिवृत्‍त शिक्षक रामशंकर श्रीवास्‍तव की। चार मार्च 1925 में रायबरेली जिला के इनौना कस्बा के संडिया गांव में जन्मे रामशंकर उस समय करीब 22 साल थे। अब 95 वर्ष के रामशंकर समाचार पत्रों और टीवी चैनलों से अपडेट होते रहते हैं लेकिन आजादी की बात आते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है। कहते हैं उस दिन मैं भी बहुत खुश था, लेकिन खुशी मनाने के बजाय पाकिस्तान से आए हिंदू विस्थापितों के इलाज, खाने-पीने व रहने का प्रबंध करने में जुटा था। 

स्‍वतंत्रता दिवस को याद कर पूर्व शिक्षक रामशंकर की भर आती हैं आंखें

बोलते-बोलते गला रूंध गया और आंखें नम हो गईं। घरवालों ने संभाला और हमने संबल दिया तो बोले 72 सालों में देश बहुत बदल गया है, अब सही दिशा में जा रहा है। आजादी के सपने पूरे हो रहे हैं। समाचार पत्रों के माध्यम से पता चलता रहता है। अन्य देशों की तुलना में भारत तेजी से साथ उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश बन रहा है। आत्मनिर्भर बन रहा है, अब तो हथियारों को भी यहीं बनाने की योजना है। कमजोर माने जा रहे किसान वर्ग को भी तवज्जो मिली है। किसानों का आजादी में योगदान भुलाया नहीं जा सकता। 

अंग्रेजों की गाड़ी पर फेंके थे पत्थर

सीएवी इंटर कालेज से गणित के शिक्षक पद से 1985 में सेवानिवृत्त हुए रामशंकर श्रीवास्तव आजादी के समय लखनऊ में रहते थे। रामशंकर आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे लेकिन उसकी पेंशन कभी नहीं लिया। 1942 में कान्यकुब्ज इंटर कालेज लखनऊ में आठवीं की कक्षा में पढ़ रहे थे तब विद्यालय के सामने अंग्रेजों की सेना की टुकड़ी गुजरते देख उसमें पत्थर से हमला कर दिया। ईंट लगने से चार पहिया वाहन का चालक घायल हो गया था। पुलिस ने विद्यालय में छापा मारा तो सारे बच्चों के बीच में रामशंकर भी कक्षा में आकर पढ़ाई करने लगे। इससे पुलिस उनकी पहचान नहीं कर पाई।

रामशंकर ने युवाओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी संभाली थी

रामशंकर ने लखनऊ के गणेशगंज मुहल्ला में रहकर लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी में दाखिला लिया।  क्रांतिकारियों से उनका जुड़ाव लगातार बना रहा। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल सहित हर नेता की मीटिंग में जाते थे। रामशंकर ने युवाओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी संभाली थी। युवा आपस में नारा लगाते थे कि 'भाई दिल्ली चलोगे, क्यों-भाई क्यों, आजादी मिलेगी यों भाई यों'।

बंटवारा होने से खुशी कम हो गई

रामशंकर दादा राव परमार्थ का भाषण सुनकर 1945 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक से जुड़ गए लेकिन आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे। वह बताते हैं कि देश का बंटवारा होने से आजादी की खुशी कम हो गई थी। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलने की हमें खुशी थी। साथ ही पाकिस्तान से प्रताडि़त होकर आने वाले हिंदुओं की दशा देखकर कष्ट भी होता था। मैं हिंदू विस्थापितों की देखरेख करने में जुटा था। उनके खाने-पीने, दवा व कपड़ों का प्रबंध करने के लिए घर-घर भिक्षा मांगता था। अपने घर से भी राशन मंगाकर देता था। विस्थापितों की मदद का काम मैंने कई साल तक किया था।


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