इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, कहा- पौत्र भी परिवार का सदस्य है
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। अदालत का कहना था कि परिवार की परिभाषा को विस्तृत करते हुए उसमें पत्नी के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों पुत्र अविवाहित पुत्री आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए। पौत्र भी परिवार की परिभाषा में शामिल है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अहम निर्णय दिया। कोर्ट ने कहा है कि पौत्र भी परिवार का सदस्य है और अपने पितामह (बाबा) के स्थान पर सरकारी गल्ले की दुकान का लाइसेंस पाने का हकदार है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा पांच अगस्त 2019 को जारी शासनादेश में पौत्र को परिवार के सदस्यों में स्थान नहीं दिए जाने को सही नहीं माना है।
कोर्ट ने कहा- परिवार की परिभाषा को विस्तृत किया जाना चाहिए
अदालत का कहना था कि परिवार की परिभाषा को विस्तृत करते हुए उसमें पत्नी के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों पुत्र, अविवाहित पुत्री आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए। जो लोग मृतक लाइसेंसधारक पर पूरी तरह से आश्रित थे और परिवार में कोई दूसरा सदस्य लाइसेंस लेने के लिए योग्य नहीं है तो ऐसे में आश्रित व्यक्ति को दुकान का लाइसेंस दिया जाना चाहिए।
जानें, किस मामले में हाई कोर्ट ने दिया यह आदेश
संदीप कुमार की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने उसे सरकारी गल्ले की दुकान पर लाइसेंस देने का निर्देश दिया है। याची का कहना था कि उसके बाबा मुंशीलाल राजभर के पास सरकारी गल्ले की दुकान का लाइसेंस था। पांच मई 2021 को उनकी मृत्यु हो गई। याची के परिवार में उसकी मां और वह स्वयं दो ही सदस्य बचे हैं। मां पढ़ी लिखी नहीं है, इसलिए उन्होंने लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं किया। याची ने आवेदन किया तो उसका आवेदन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि पांच अगस्त 2019 को जारी शासनादेश पौत्र परिवार की परिभाषा में शामिल नहीं है। इसलिए याची को लाइसेंस नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट ने कहा- पौत्र भी अपने बाबा के स्थान पर दुकान का लाइसेंस पाने का है हकदार
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णीत अशोक कुमार, सुनील कुमार केस का हवाला देते हुए कहा कि पौत्र भी अपने बाबा के स्थान पर सरकारी गल्ले की दुकान का लाइसेंस पाने का हकदार है।