स्ट्रेचर खुद खींच रहे मरीजों के घरवाले तब भी नहीं हो रहा इलाज, हाल एसआरएन अस्पताल का
एसआरएन में चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त होने से निजी अस्पतालों में रोगियों की भीड़ बढ़ गई है। लोग कैसे भी रुपये पैसे इकट्ठा करके निजी अस्पतालों में इलाज कराने को पहुंच रहे हैं जबकि एसआरएन के जिम्मेदार अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। ट्रामा सेंटर, इमरजेंसी, आपरेशन थिएटर और वार्ड में ड्यूटी से जूनियर डाक्टरों के हाथ खींचे तीन दिए हो गए हैं लेकिन हजारों रोगियों को इससे हो रही तकलीफ उच्चाधिकारियों को नहीं दिख रही। स्वास्थ्य विभाग के अफसरान तो हालात झांकने तक नहीं जा रहे, न ही उनका इससे सरोकार रह गया है कि जूनियर डाक्टर हड़ताल पर हैं तो व्यवस्थाएं कैसे संभल रही होंगी। जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी आंख मूंदे बैठे हैं। दूरदाज से सैकड़ों रुपये खर्च करके बीमार लोग कराहते हुए स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय (एसआएन) पहुंच रहे हैं और यहां हालात इतने खराब हैं कि उन्हें स्ट्रेचर खींचने के लिए एक वार्ड ब्वाय तक नसीब नहीं हैं। एसआरएन में व्यवस्था तब तक ठीक थी जब तक जूनियर डाक्टर केवल ओपीडी और इलेक्टिव ओटी से कार्य बहिष्कार कर रहे थे। 27 दिसंबर की शाम उन्होंने ट्रामा सेंटर व अन्य सभी इमरजेंसी को ठप कर दिया था। इसके बाद से ही अस्पताल आने वाले लोग इलाज के बिना लौट रहे हैं।
साहब, डाक्टर नहीं देख रहे हम क्या करें
मेजा से आए प्रभु दयाल को उसके परिवार के लोग ही स्ट्रेचर पर इधर से उधर भागते रहे। कभी पुरानी बिल्डिंग के एक्सरे विभाग तक तो कभी पुराने लालबत्ती भवन तक। उन्हें एक वार्ड ब्वाय तक नहीं मिला। उन लोगों ने बताया कि न डाक्टर देख रहे हैं न कोई कर्मचारी सुन रहा है।
एक घंटे तक खड़े रहे, नहीं आए डाक्टर
मेडिसिन ओपीडी में गुरुवार को एक वरिष्ठ डाक्टर अपनी कुर्सी से गायब रहे। नान पीजी रेजीडेंट ही रोगियों की बीमारी पूछकर दवा लिखते रहे। बाहर लाइन लगाए रोगियों ने कहा कि एक घंटे से खड़े हैं, बताया जा रहा है कि डाक्टर साहब वार्ड में राउंड पर गए हैं।
यह कैसा अस्पताल सभी व्यवस्थाएं बेहाल
एसआरएन में एमआरआइ, सीटी स्कैन की रिपोर्ट अब काली फिल्म में नहीं मिल रही। लोग एक्सरे के लिए भी भटक रहे हैं। इमरजेंसी और वार्डों में बेडशीट तक रोगियों को नहीं मिल रही, वरिष्ठ डाक्टर भागादौड़ी में लगे हैं और वार्ड ब्वाय तक की मनमानी है। रोगियों को न स्ट्रेचर मिल पा रहा न ढंग की व्हील चेयर। यह हालात तब हैं जब इसी अस्पताल में प्रमुख चिकित्साधीक्षक बैठते हैं और कुछ देर के लिए मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य का भी आना होता हैै।
डाक्टरों को मनाने तक नहीं पहुंचे
जूनियर डाक्टरों को हड़ताल करते एक महीने हो गए हैं। लेकिन, उन्हें मनाने तक कोई भी उच्चाधिकारी नहीं पहुंचा। मुख्य चिकित्साधिकारी, मेडिकल कालेज के प्राचार्य और यहां तक कि जिलाधिकारी भी मौन हैं।
निजी अस्पतालों में भीड़
एसआरएन में चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त होने से निजी अस्पतालों में रोगियों की भीड़ बढ़ गई है। लोग कैसे भी रुपये पैसे इकट्ठा करके निजी अस्पतालों में इलाज कराने को पहुंच रहे हैं जबकि एसआरएन के जिम्मेदार अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।