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सौ बरस पहले कच्चे घरों वाला गांव था प्रयागराज का प्रमुख बाजार चौक, पढ़िए यह दिलचस्प खबर

प्रयागराज के व्यस्ततम इलाके कभी साधारण गांव जैसे हुआ करते थे। यहां के बहुत से मोहल्ले अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर आज भी हैं। देश आजाद हुआ पर मुगलों एवं अंग्रेजों के नाम पर रखे गए मोहल्ले का नाम परिवर्तित नहीं हुआ।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 07 Jan 2021 03:30 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jan 2021 03:30 PM (IST)
सौ बरस पहले कच्चे घरों वाला गांव था प्रयागराज का प्रमुख बाजार चौक, पढ़िए यह दिलचस्प खबर
प्रयागराज के व्यस्ततम इलाके कभी साधारण गांव जैसे थे। बहुत से मोहल्ले अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर आज भी हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के व्यस्ततम इलाके कभी साधारण गांव जैसे हुआ करते थे। यहां के बहुत से मोहल्ले अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर आज भी हैं। देश आजाद हुआ पर मुगलों एवं अंग्रेजों के नाम पर रखे गए मोहल्ले का नाम परिवर्तित नहीं हुआ। हालांकि आजाद भारत में इन मोहल्ले में बसी उप बस्तियों के नाम जरूर बदले स्वरूप में रखे गए। 1864 में प्रयागराज के कलेक्टर विलियम जांस्टन थे। उन्होंने चौक की पुरानी बस्ती की जगह नया बाजार व पक्की सड़क बनवाई थी। इस वजह से इस इलाके का नाम जांस्टनगंज हो गया। तभी से इसे लोग जांस्टनगंज कहने लगे। वैसे सौ साल पहले आज का भीड़भाड़ वाला चौक का इलाका साधारण गांव जैसे हुआ करता था।   इस इलाके में मुगलों के समय बनीं दो सराएं खुल्दाबाद सराय और गढ़ी सराय थीं।
 
तब कच्चे घर ही थे चौक में और था एक तालाब
हिंदुस्तान एकेडमी के पूर्व सचिव रविनंदन सिंह बताते हैं कि जहां आज चौक मोहल्ला हैं वहां छोटे-छोटे कच्चे घर थे। एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप में डॉ. सालिग्राम श्रीवास्तव ने चौक व इसके आसपास के इलाकों की तब की दशा पर साफ लिखा है कि चौक में कुछ मकान ही पक्के थे। कुछ बिना प्लास्टर की पक्की ईंटों के बने थे। बीच में एक पक्का तालाब था। इस तालाब में आस पास का पानी एकत्र होता था। इसमें लोग कूड़ा करकट फेंका करते थे। इस जगह को लोग लाल डिग्गी कहते थे। इसके किनारे कुछ बिसाती, कुजड़े और अन्य छोटे-छोटे दुकानदार चबूतरों पर बैठते थे। जांस्टनगंज घनी बस्ती थी। चौक से कटरे की ओर जाने के लिए ठठेरी बाजार, शाहगंज, लीडर रोड का रास्ता था।
 
आज के बरामदे की जगह पहले था एक बड़ा कुआं
इतिहासकार प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि चौक में पहले एक विशाल कुआं हुआ करता था। अब इस जगह को बरामदा कहा जाता हैं। यहां सौंदर्य प्रसाधन की बहुत सी दुकाने हैं। इसके ठीक सामने गिरजाघर के पास नीम के सात पेड़ों का समूह था। इन पर अंग्रेजों की पुलिस क्रांतिकारियों को फांसी देती थी। इसके बाद इनको कुएं में दफन कर देती थी। प्रो.पाल बताते हैं कि 1873 में लाल डिग्गी के विशाल गढडे को रामेश्वर राय चौधरी ने पटवाकर सब्जी मंडी बनवाई थी। वे कचहरी के प्रसिद्ध गुमाश्ता थे।
 
1874 में बनी थी कोतवाली
इतिहासकार प्रो. अनिल कुमार दुबे बताते हैं कि प्रयागराज की कोतवाली 1874 मे बनी थी। कोतवाली के पीछे रानी मंडी मोहल्ला है। रानी मंडी का नामकरण इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की शुरूआत की याद में रखा गया था। रानी मंडी व भारतीय भवन पुस्तकालय के पीछे एक पठार था। इस पठार को खुशहाल पर्वत कहा जाता था। इसी नाम से यह मोहल्ला आज भी जाना जाता है। इसके नजदीक तब साधु गंगादास रहते थे। जिनके नाम पर चौक गंगादास मोहल्ला बसा। खुशहाल पर्वत से नीचे के खाली स्थान में मालवीय लोग के बसने से इस इलाके का नाम मालवीय नगर पड़ गया। इसी के पास दक्षिण की ओर पहले किसी सती का चौरा था। जिसे सती चौरा मोहल्ला कहा जाता है। ऐसे ही राजा अच्छित्र के नाम पर अहियापुर मोहल्ला बसा। दरिया (यमुना)के किनारे होने के कारण मुगलकाल से दरियाबाद मोहल्ला भी आज आबाद है।

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