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बेरोजगार पति से गुजारा भत्ता मांगा तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका कर दी खारिज

पति का कहना था कि पत्नी अपने पिता के साथ रहती हैं। उनके पास 10 बीघा खेत है। पिता पोस्टमैन हैं उसका ब्यूटी पार्लर है। पति की मां कैंसर से पीडि़त हैं। पिता किसान है। वह खेतिहर मजदूर हैं। ऐसे में दो हजार रुपये भी देने में असमर्थ है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Fri, 14 Jan 2022 08:00 AM (IST)Updated: Fri, 14 Jan 2022 05:43 PM (IST)
बेरोजगार पति से गुजारा भत्ता मांगा तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका कर दी खारिज
छह हजार रुपये महीने की आय पर पत्नी को दो हजार रुपये के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-125 के अंतर्गत गुजारा भत्ते का भुगतान कोर्ट के आदेश की तिथि से किये जाएगा, न कि अर्जी दाखिल करने की तारीख से। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ते का निर्धारण पति की मासिक आय के आधार पर होगा। यदि पति स्नातक बेरोजगार श्रमिक है तो दो सौ रुपये प्रतिदिन की मजदूरी के आधार पर छह हजार रुपये महीने की आय पर पत्नी को दो हजार रुपये प्रतिमाह गुजरा भत्ते के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है।

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पत्नी की पुनरीक्षण याचिका खारिज

हाई कोर्ट ने पत्नी की तरफ से गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग में दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी ने प्रतिमा सिंह व पति पंकज सिंह उर्फ बब्लू सिंह की अलग अलग पुनरीक्षण याचिकाओं पर दिया है। पत्नी का कहना था कि पति दिल्ली में प्राइवेट नौकरी से 15 हजार रुपये प्रतिमाह कमाता है। इसलिए उसे आठ हजार रुपये गुजारा भत्ता दिलाया जाय। प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय ने पति की आय छह हजार रुपये महीने का निर्धारण बिना ठोस आधार के किया है। ऐसे में गुजारा भत्ता बढ़ाया जाय।

पत्नी समर्थ मगर गरीबी से जूझते पति से मांगा गुजारा भत्ता

वहीं, पति का कहना था कि पत्नी अपने पिता के साथ रहती हैं। उनके पास 10 बीघा खेत है। पिता पोस्टमैन हैं, उसका ब्यूटी पार्लर है। वह स्नातक हैं, जबकि याची पति की मां कैंसर से पीडि़त हैं। पिता किसान है। वह खेतिहर मजदूर हैं। ऐसे में दो हजार रुपये भी हर महीने देने में असमर्थ है। उसके खिलाफ दहेज उत्पीडऩ का केस दर्ज किया गया जिसके कारण वह अपने पिता के साथ जेल में बंद रहा। कोर्ट ने कहा कि पति दिल्ली में नौकरी करता है, यह साबित नहीं हो सका। ऐसे में परिवार न्यायालय का आदेश सही है। याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।


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