हाईकोर्ट ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एटा के खिलाफ को-वारंटो जारी करने से किया इंकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि असंतुष्टि या असुविधा को लेकर याचिका स्वीकार्य नहीं है। एटा के राजकीय अस्पताल में नेत्र प्रशिक्षण अधिकारी सोहन लाल शर्मा की याचिका कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया है।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का कार्यालय लोक कार्यालय (पब्लिक ऑफिस) नहीं है। इसलिए उसे पद से हटाने के लिए (अधिकार पृच्छा याचिका) को-वारंट रिट जारी नहीं की जा सकती है। और यदि किसी के विधिक अधिकार का हनन हुआ है या उसे विधिक अधिकार से वंचित किया गया है तो ही अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिका दायर की जा सकती है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि असंतुष्टि या असुविधा को लेकर याचिका स्वीकार्य नहीं है। एटा के राजकीय अस्पताल में नेत्र प्रशिक्षण अधिकारी सोहन लाल शर्मा की याचिका पर कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया है।
नई पोस्टिंग पर नहीं जाने और तीन साल लापता रहने पर दायर की गई याचिका
याचिका में एटा राजकीय अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) को पद से हटाने की मांग की गई थी। याची का कहना था कि सीएमएस का तबादला तीन वर्ष पूर्व कानपुर जिला अस्पताल से एटा जिला अस्पताल के लिए किया गया था। उन्होंने वहां ज्वाइन नहीं किया और लगातार तीन वर्ष तक बिना किसी सूचना के लापता भी रहे। तीन साल बाद एटा में सीएमएस का कार्यभार ग्रहण कर लिया।
सीएमएस के ज्वाइन नहीं करने से याची को कोई व्यक्तिगत नुकसान भी नहीं
सरकारी वकील ने कहा कि याची को कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि वह सीएमएस पद का दावेदार नहीं है। दूसरे सीएमएस का कार्यालय लोक कार्यालय नहीं है इसलिए इस पद के खिलाफ रिट ऑफ को वारंटो जारी नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने दलील स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
Edited By Ankur Tripathi